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Pegasus क्या है? जिसने दुनियाभर में मचाया हड़कंप, आपके फोन में कोई जासूसी कर रहा है कैसे चलेगा पता?

What is Pegasus: दुनियाभर में शायद ही किसी स्पाईवेयर की इतनी चर्चा हुई हो, जितनी Pegasus की हुई. इस स्पाईवेयर को इजरायल के NSO ग्रुप में तैयार किया था और इसका इस्तेमाल दुनियाभर में लोगों की जासूसी के लिए हुआ था. अगस्त 2016 में ये स्पाईवेयर पहली बार सामने आया और फिर इस पर हड़कंप मच गया. आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें.

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Pegasus स्पाईवेयर जिसने दुनिया में मचा दिया हड़कंप
Pegasus स्पाईवेयर जिसने दुनिया में मचा दिया हड़कंप

Pegasus... एक ऐसा घोड़ा जो उड़ सकता है. ग्रीस की कहानियों में ऐसे एक घोड़े का जिक्र मिलता है, जो हवा में उड़ सकता है. मगर यहां चर्चा जासूसी के लिए इस्तेमाल हुए एक सॉफ्टवेयर की है, जिसने दुनियाभर में हड़कंप मचा दिया. मीडिया, संसद और कोर्ट हर जगह इस सॉफ्टवेयर की चर्चा हुई.

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दुनियाभर में कई स्पाईवेयर का इस्तेमाल होता है, लेकिन Pegasus की चर्चा सबसे ज्यादा हुई. इस स्पाईवेयर को इजरायल के NSO ग्रुप ने डेवलप किया था, जो किसी के फोन में चुपके से इंस्टॉल किया जा सकता था. यहां तक कि इसे किसी के फोन में इंस्टॉल करने के लिए यूजर के इस पर क्लिक करने की भी जरूरत नहीं थी. 

और यही इससी सबसे बड़ी खासियत भी है, ये स्पाईवेयर जीरो-क्लिक एक्सप्लॉयट है. इस स्पाईवेयर की जद में एंड्रॉयड और iOS दोनों ही ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करने वाले फोन्स थे. स्पाईवेयर iOS 14.7 वर्जन में आसानी से सेंधमारी कर सकता था. किसी यूजर के फोन में हर तरह की जासूसी का काम Pegasus कर सकता था. 

Pegasus

कहानी पेगासस की...

इस स्पाईवेयर के नाम के पीछे भी एक कहानी है. पेगासस ग्रीक की पौराणिक कथा में एक घोड़े का नाम होता है, जिसके पंख होते हैं. ये एक टॉर्जन हॉर्स कम्प्यूटर वायरस है, जो किसी भी डिवाइस में यूजर की जानकारी के बिना सेंधमारी कर सकता था. दरअसल, ये सॉफ्टवेयर डिवाइस में मौजूद खामी को खोजता और फिर यूजर के डिवाइस को इन्फेक्ट करता है.

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इसकी मदद से किसी के टेक्स्ट मैसेज रीड किए जा सकते हैं. ये कॉल्स ट्रैक कर सकता था, पासवर्ड कलेक्ट करने, लोकेशन ट्रैक करने के साथ-साथ माइक्रोफोन और कैमरा तक का एक्सेस हासिल कर सकता था. पेगासस को साल 2016 में डिस्कवर किया गया था, जब एक फोन में इसका इंस्टॉलेशन फेल हो गया था. 

Pegasus

कैसे पड़ा गया था पेगासस? 

ये सवाल तो जरूर मन में आता है कि जब कोई सॉफ्टवेयर इतना हाईटेक था, तो इसके पकड़ा कैसे गया? एक गलती की वजह से ये सॉफ्टवेयर दुनिया की नजर में आया. दरअसल, अगस्त 2016 में अरब में मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाले अहमद मंसूर को एक टेक्स्ट मैसेज आया. 

उन्हें एक सीक्रेट मैसेज मिला, जिसमें UAE के जेल में बंद कैदियों पर अत्याचार के बारे में बताया गया था. मंसूर ने इस लिंक को यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो की सिटीजन लैब को भेजा, जिन्होंने जांच में पाया कि टेक्स्ट मैसेज के साथ आए लिंक में एक स्पाईवेयर छिपा हुआ है. किसी फोन में मायवेयर इम्प्लांट करने के इस तरीके को सोशल इंजीनियरिंग कहते हैं. 

Pegasus

पेगासस जैसे सॉफ्टवेयर आपके फोन में तो नहीं?

Pegasus को पकड़ना काफी मुश्किल काम है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर आप फोन में मौजूद स्पाईवेयर का पता जरूर लगा सकते हैं. इसका सबसे बड़ा साइन बैटरी लाइफ और डेटा कंजम्पशन है. चूंकि, आपके फोन में एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जो पूरे वक्त एक्टिव रहता है, तो निश्चित तौर पर इसका असर आपकी बैटरी पर पड़ेगा. 

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दूसरी तरफ इन स्पाईवेयर्स को जासूसी के बाद डेटा हैकर या मेन सर्वर को भेजना होता है. इस प्रक्रिया में अच्छा खासा डेटा खत्म होता है और यहां पर आपको किसी स्पाईवेयर के होने का अंदेशा लगेगा. क्योंकि आपका डेटा जरूरत से ज्यादा खर्च होगा. 

इसके साथ ही आपके फोन में कुछ दूसरे साइन्स भी दिखेंगे. दरअसल, एंड्रॉयड हो या फिर iOS, फोन में कैमरा व माइक्रोफोन के एक्टिव होने पर कुछ लाइट्स दिखती हैं. इन लाइट्स की मदद से आपको पता चलता है कि कौन सा इक्यूपमेंट यूज हो रहा है.

ऐसे में अगर आपकी परमिशन के बिना माइक्रोफोन या कैमरे की लाइट जलती है, तो आप डिवाइस में स्पाईवेयर होने का अंदाजा लगा सकते हैं. ये फीचर्स लेटेस्ट एंड्रॉयड और iOS सॉफ्टवेयर वर्जन में मिलते हैं. 

स्टोरेज और अनजान ऐप्स का होना भी स्पाईवेयर की मौजूदगी के संकेत देते हैं. कई बार यूजर्स को उनके फोन में अनजान ऐप्स मिलते हैं. ऐसे ऐप्स जिन्हें उन्होंने कभी डाउनलोड ही नहीं किया. इन ऐप्स का होना भी फोन में स्पाईवेयर के होने का संकेत देता है. 

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