दोपहर के खाने के बाद हम कुछ देर अपने ऑफिस के अड्डा पर बैठते हैं. अड्डा है तो चाय की दुकान, लेकिन वहां बैठ कर लोग सिगरेट पीते हैं. मैं सिगरेट नहीं पीता, पर खाने के बाद कुछ देर बैठ कर गप करने में मज़ा आता है. कल वहां चर्चा चल पड़ी महिला दिवस पर.कुछ मित्रों ने कहा कि महिला दिवस होना ही नहीं चाहिए. ये भेदभाव है. कुछ बुद्धिजीवी टाइप के मित्रों ने कहा कि रोज़ ही महिला दिवस होना चाहिए. ये क्या बात हुई कि एक दिन महिलाओं को इज़्जत दी जाए. बाकी दिनों का क्या?