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संजय सिन्हा की कहानी: जो रिश्तों में हैं वही जी रहे हैं

संजय सिन्हा की कहानी: जो रिश्तों में हैं वही जी रहे हैं

हम जब रिश्तों के बीच होते हैं तो उत्सव मनाते हैं. अकेले में हम सिर्फ मुस्कुरा सकते हैं लेकिन रिश्तों के बीच हम ठहाके लगाते हैं. ये सब कुछ सिर्फ इंसानी रिश्तों में मुमकिन है. आज आदमी सबके बीच रहकर भी तनहा है, अकेला है. सारे रिश्ते हैं लेकिन कोई रिश्ता बचा नहीं. हम सब इतने व्यस्त हैं कि हमारे पास खुद के लिए समय ही नहीं है.

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