संजय सिन्हा सुना रहे हैं अपने दफ्तर के साथी की कहानी जिसमें वे अपने ठीकठाक नौकरी के बावजूद अपने परिवार की दिक्कतों का जिक्र करते-करते फफक पड़े. वे बता रहे हैं कि कैसे उनके दफ्तर के साथी और उनकी पत्नी ने अपनी नौकरियों की व्यस्तताओं के बीच माता-पिता और रिश्तेदारों को भूला दिया. और बेटे की बीमारी पर वे किस कदर परेशान हो रहे हैं.