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संजय सिन्हा की कहानी: जानें क्यों जिंदगी की पिचकारी में रिश्तों के रंग भरें?

संजय सिन्हा की कहानी: जानें क्यों जिंदगी की पिचकारी में रिश्तों के रंग भरें?

सभी बच्चे होली खेल रहे थे पर मैं नहीं खेल रहा था. मां ने पूछा भी था कि तुम होली क्यों नहीं खेलने जा रहे? मैंने अनमना होकर कह दिया था कि मैं होली नहीं खेलूंगा. मां तब रसोई में पुआ, गुझिया और दही-बड़े बना रही थी. मैंने कह दिया, मां ने ध्यान नहीं दिया. जानें क्या थी संजय सिन्हा की होली न खेलने की वजह और क्यों जिंदगी की हर दिन की अपनी पिचकारी में रिश्तों के रंग को भरना क्यों जरूरी है...

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