कितना सच है, कितना झूठ, मुझे नहीं मालूम. बचपन में किसी से सुना था कि जापान में अगर किसी कंपनी के मजदूरों को मालिक से शिकायत होती है, तो वो काम नहीं रोकते, बल्कि दोगुना काम करने लगते हैं. अधिक काम करके वो मालिकों को मजबूर कर देते थे कि उनकी आवाज सुनी जाए. मालिक सुनते थे. अगर ऐसा है, तो अपनी बात रखने का ये तरीका मेरी समझ में बहुत ही नायाब है. हो सकता है जिसने मुझे ये बात बताई होगी, उसने सिर्फ कहने के लिए ऐसा कहा होगा. लेकिन आप तो जानते हैं कि संजय सिन्हा हर संदेश को गंभीरता से आत्मसात करते हैं. मेरी इसी कोशिश का परिणाम है कि विकट से विकट परिस्थिति में भी मैंने काम करने से खुद को नहीं रोका. सुनिए पूरी कहानी.......