निजी तौर पर भले मेरा पाला पुलिस से नहीं पड़ता, पर बतौर पत्रकार खबरों में तो मेरा पाला पुलिस वालों से पड़ता ही रहता है. पुलिस वालों के कई चेहरे मेरे सामने आते रहते हैं. कभी शब्द बन कर तो कभी तस्वीर बन कर. पर हाल में गुरुग्राम के एक स्कूल के बस के खलासी का जो वीडियो मेरे सामने आया, उससे तो मैं सिहर ही उठा हूं. उस खलासी का नाम आप जानते हैं. पर मैं थोड़ा पीछे आपको ले चलता हूं, ताकि पूरी घटना आपकी आंखों के आगे घूम उठे. मार्च 1988 में जब मैं दिल्ली आया था, उन्हीं दिनों पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश की हत्या की खबरें खूब उछली थीं. आतंकवादियों ने पाश की हत्या कर दी थी क्योंकि वो कविता लिखते थे. उन्होंने एक कविता लिखी थी कि 'मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती, पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती. बैठे बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है, सहमी सी चुप्पी में जकड़े जाना बुरा तो है, पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता. सबसे ख़तरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना. ना होना तड़प का ,सब कुछ सहन कर जाना…”