जिस जंग को वो अंजाम तक पहुंचाना चाहतीं थी वो अधूरी रह गई. तालिबान के जुल्मों के खिलाफ लेखिका सुष्मिता बनर्जी जिस बुलंदी से आवाज उठाई. वो मजहब के नाम पर कत्लेआम करने वालों को चुभ गई. सुष्मिता भले अब इस दुनिया में न हो, लेकिन उनका जब्बा तालिबान और उनकी नापाक हरकतों को हमेशा ललकारता रहेगा.