मद्धम रौशनी में थिरकते कदम और संग-संग गूंजता गालिब का अंदाज-ए-बयां ये कोशिश थी गालिब के जन्मदिन के मौके पर उस दौर और उनकी शायरी को आज के जमाने में जिंदा रखने की.