अनुज चौधरी (Anuj Chaudhary) उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बहेड़ी गांव के रहने वाले हैं. वे एक सेवानिवृत्त शौकिया भारतीय फ्रीस्टाइल पहलवान हैं, जिन्होंने पुरुषों की लाइट हैवीवेट श्रेणी में प्रतिस्पर्धा की. वर्तमान में, वह यूपी पुलिस में उप अधीक्षक (डीएसपी) के रूप में कार्यरत हैं. वे कई बार नेशनल चैंपियन रहे. उनको 2001 में लक्ष्मण अवॉर्ड और 2005 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
अनुज चौधरी को यूपी सरकार ने स्पोर्ट्स कोटे के तहत उत्तर प्रदेश पुलिस में भर्ती किया. वे मार्च 2025 में सपा नेता आजम खान से भिड़ गए , जिसके बाद डीएसपी अनुज चौधरी सुर्खियों में रहे.
अनुज कुमार चौधरी का जन्म 5 अगस्त 1980 को हुआ था.
उन्होंने एशियाई खेलों (2002 और 2006) में 74 किलोग्राम वर्ग में शीर्ष दस में स्थान प्राप्त किया, राष्ट्रमंडल खेलों (2002 और 2010) में दो रजत पदक और एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में दो कांस्य पदक जीते, और 2004 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में अपने देश भारत का प्रतिनिधित्व भी किया. अनुज चौधरी ने गुरु हनुमान अखाड़े में प्रशिक्षण लिया.
यूपी के संभल के सीओ अनुज चौधरी ने मुस्लिम समाज को होली के दिन घरों में रहने की सलाह दी है. इस बयान पर विपक्ष ने आपत्ति जताई है, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीओ का समर्थन किया है. वहीं, मुस्लिम समुदाय का कहना है कि पहले भी जुमे के दिन होली मनाई गई है.
संभल में होली और जुमा को लेकर उठे विवाद ने सियासी रंग ले लिया है. संभल पुलिस के सीओ के बयान के बाद अब बिहार तक मामला पहुंच गया है. बीजेपी नेता '52 जुमा एक होली' का मंत्र दे रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे सांप्रदायिक बता रहा है. क्या यह 80-20 की राजनीति का नया मोड़ है? होली पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है.
संभल के सीओ अनुज चौधरी के होली पर मुस्लिम बहुल इलाकों में सावधानी बरतने के बयान पर विवाद छिड़ गया है. भाजपा इसे उचित ठहरा रही है जबकि विपक्ष इसे सांप्रदायिक बता रहा है. दंगल में सुधांशु त्रिवेदी और अनुराग भदौरिया के बीच तीखी बहस हुई. त्रिवेदी ने कहा कि मुस्लिम बहुल इलाकों में अक्सर हिंसा होती है.
रंग और गुलाल लगने पर किसी मुसलमान का रोजा नहीं खराब होता है. इस देश में क्रिश्चियन लोगों का त्योहार क्रिसमस जिस तरह धूम धाम से मनाया जा रहा है उस तरह से ईद भी मनाया जा सकता है. पर दिक्कत यह है कि हिंदू-मुसलमान अगर एक साथ ईद और होली मनाने लगे तो सियासतदानों का क्या होगा?