आर्कटिक
आर्कटिक (Arctic) पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है. आर्कटिक में आर्कटिक महासागर, आसन्न समुद्र और कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ हिस्से शामिल हैं. आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसमी रूप से अलग-अलग बर्फ और बर्फ का आवरण होता है, जिसमें मुख्य रूप से टुंड्रा युक्त पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी रूप से जमी हुई भूमिगत बर्फ) होती है. आर्कटिक समुद्र में कई जगहों पर मौसमी समुद्री बर्फ होती है.
ध्रुवीय क्षेत्र में होने के कारण आर्कटिक में सूर्य की रोशनी लंबे समय तक रहती है. यहां छोटे बढ़ते मौसम होते हैं जहां ठंड और बर्फ से ढकी सर्दियों की स्थिति बनी रहती है (Weather in Arctic).
आर्कटिक के वतावारण में वनस्पति पौधों पाए जाते हैं जैसे कि छोटी झाड़ियां, ग्रामीनोइड्स, जड़ी-बूटियां, लाइकेन और काई, जो सभी अपेक्षाकृत जमीन के करीब बढ़ते हैं और टुंड्रा बनाते हैं. टुंड्रा पर शाकाहारी जीवों में आर्कटिक खरगोश, लेमिंग, कस्तूरी और कारिबू शामिल हैं. वे बर्फीले उल्लू, आर्कटिक लोमड़ी, ग्रिजली भालू और आर्कटिक भेड़ियों के शिकार होते हैं. ध्रुवीय भालू समुद्री जीव का शिकार करना पसंद करता है. अन्य स्थलीय जानवरों में वूल्वरिन, मूस, डॉल भेड़, ermines और आर्कटिक ग्राउंड गिलहरी शामिल हैं (Arctic Flora and Fauna).
आर्कटिक महासागर से पहला आइस फ्री डे साल 2027 में होने की आशंका जताई जा रही है. यह स्टडी हाल ही में सामने आई है. आर्कटिक की बर्फ अप्रत्याशित दर से पिघल रही है. हर दस साल में 12 फीसदी की दर से.वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले तीन साल में इस इलाके से बर्फ लगभग खत्म हो जाएगी.
एक बेहद डरावनी स्टडी सामने आई है. जिसमें कहा गया है कि आर्कटिक सागर से तीन साल में बर्फ खत्म हो जाएगी. ऐसे ही गर्मी बढ़ती रही तो उस इलाके के जीवों के लिए खतरा बढ़ेगा. जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. जानिए कितनी खतरनाक बातें कहीं गई हैं इस रिपोर्ट में...
दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला से एक डराने वाली खबर आई है. छह ग्लेशियर वाले इस देश में आखिरी ग्लेशियर हम्बोल्ट पिघलकर इतना छोटा हो चुका कि वैज्ञानिक इसे बर्फ का मैदान कह रहे हैं. आशंका है कि इसके बाद कई और देशों का नंबर है. वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर पिघल जाएं तो धरती का बड़ा हिस्सा समुद्र में समा जाएगा.
पिघलती बर्फ से सिर्फ समंदर में पानी नहीं बढ़ता, बल्कि पूरे दिन का समय बदल जाता है. इससे पूरे साल का समय भी प्रभावित होता है. एक हैरान करने वाली साइंटिफिक स्टडी में इस बात का खुलासा किया गया है. आइए जानते हैं कि कैसे ध्रुवों पर पिघलती बर्फ हमारे दिन के समय को बदल रही है?
10 साल के अंदर आर्कटिक में बर्फ देखने को नहीं मिलेगी. खासतौर से सितंबर महीने में. यानी जब वहां गर्मियां रहती हैं. अगर ऐसा हुआ तो दिक्कत वहां के जानवरों, पर्यावरण को होगा. नई प्रजातियों का घुसपैठ होगा. साथ ही समंदर के जलस्तर में भी बढ़ोतरी होगी. दुनिया के कई इलाके इसकी चपेट में आएंगे.
यहां दिख रही तस्वीर में आपको कमल जैसे फूल दिख रहे हैं. ये कमल नहीं बल्कि 'बर्फ कमल' हैं. ये आर्कटिक सागर में उगते हैं. वो खास दिनों के दौरान जब तापमान बेहद उपयुक्त होता है. आइए जानते हैं कि ये फूल कैसे बनते हैं. इनके पीछे का साइंस क्या है?
अमेरिका में आये बर्फीले तूफान ने सब कुछ अस्त व्यस्त कर रख दिया है. जानकारों का कहना है कि ये बर्फीला तूफान आर्कटिक डीप फ्रीज (Arctic Deep Freeze) की वजह से आया है. देखें यूएस टॉप-10 में अमेरिका की बड़ी खबरे.
दुनिया के सबसे सुंदर और खतरनाक जानवरों में से एक सफेद भालुओं का घर टूट रहा है. खत्म हो रहा है. उत्तरी ध्रुव के आसपास की बर्फ तेजी से पिघल रही है. वैज्ञानिकों ने अंदाजा लगाया है कि जिस हिसाब से ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है, 10 साल में आर्कटिक की बर्फ खत्म हो जाएगी. दिक्कत सफेद भालुओं को होगी.
अमेरिका के कई इलाकों में बर्फीला तूफान आया हुआ है. इसे Bomb Cyclone बुलाया जा रहा है. पारा माइनस 57 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया है. 43 इंच मोटी बर्फ की चादर पड़ी है. ऐसे मौसम की वजह है आर्कटिक ब्लास्ट. आखिर ये Arctic Blast है क्या चीज? कैसे बनता है? इसमें होता क्या है?
नए शोध से पता चलता है कि पृथ्वी पर समुद्र में एक जगह ऐसी है, जहां शनि ग्रह (Saturn) के चंद्रमा एन्सेलेडस (Enceladus) की तरह ही गतिविधियां होती हैं. यह खोज भविष्य के उन अंतरिक्ष मिशनों की तैयार के लिए वैज्ञानिकों की मदद कर सकती है, जो महासागर वाले ग्रहों पर जीवन की संभावना का पता लगाएंगे.
कोरोना से भयानक महामारी अब ऐसी जगह से आएगी, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. कोरोना के सारे वैरिएंट्स से खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया ग्लेशियरों में छिपे हैं. इनका सबसे बड़ा भंडार उत्तरी ध्रुव के आर्कटिक झीलों में है. जलवायु परिवर्तन की वजह से पिघलते ग्लेशियरों से न जाने कैसी-कैसी महामारियां फैलेंगी. नई स्टडी में यह खुलासा हुआ है.
दुनिया का ऐसा देश जहां दो महीने सूरज ढलता ही नहीं. रात होती ही नहीं. सूरज बीच रात में भी होराइजन पर दिखता है. इन दो महीनों में धरती के घूमने से जो अंधेरा आता है, वो इस देश के बगल से निकल जाता है. शाम होती है लेकिन रात नहीं होती. थोड़ा धुधंलका होता है पर अंधेरा नहीं होता.