आर्टेमिस मिशन
आर्टेमिस मिशन (Artemis Mission) एक ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम है (Human Spaceflight Program). इसका नेतृत्व नासा कई अंतरराष्ट्रीय और अमेरिकी घरेलू भागीदारों के साथ मिलकर कर रहा है (Artemis Mission Led by NASA). आर्टेमिस का प्राथमिक लक्ष्य 2025 तक मनुष्यों को चंद्रमा, खासकर उसके दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचाकर वापस लाना है (Artemis Mission Goal). सफल होने पर, यह 1972 में अपोलो 17 के बाद से पहला क्रू ल्यूनर लैंडिंग मिशन होगा.
आर्टेमिस मिशन दिसंबर 2017 में अमेरिकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने के लगातार प्रयासों के हिस्से के रूप में शुरू हुआ था. कार्यक्रम के लिए नासा का घोषित अल्पकालिक लक्ष्य चंद्रमा पर पहली महिला और और पहले अश्वेत व्यक्ति को उतारना है. इसके मिड-टर्म ऑब्जेक्टिव में एक अंतरराष्ट्रीय अभियान दल की स्थापना, और चंद्रमा पर एक स्थायी मानव उपस्थिति शामिल है. आर्टेमिस के लिए दीर्घकालिक उद्देश्य चांद पर मौजूद संसाधनों को निकालने की नींव रखना और आखिर में मंगल और उससे आगे के लिए चालक दल के मिशन बनाना है (Artemis Mission Objectives).
आर्टेमिस कार्यक्रम मुख्य रूप से नासा और यू.एस. कमर्शियल स्पेसफ्लाइट कॉन्ट्रेक्टर द्वारा चलाया जा रहा है, जिसमें यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और कई अन्य देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों की भी साझेदारी है. अन्य देशों को गवर्निंग आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर करके कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है (Artemis Mission International Contractors).
NASA चाहता है कि चांद पर उसके एस्ट्रोनॉट्स कार चलाएं. ताकि वो ज्यादा लंबी दूरी तय करके पानी की खोज कर सकें. इसलिए नासा ने तीन कंपनियों को चुना है. ये कंपनियां अब चांद की सतह पर चलने वाली लूनर टरेन व्हीकल्स यानी LTV बनाएंगे. जानिए क्या है नासा का पूरा प्लान...
आप चांद देख कर भले ही कई त्योहार मनाते हों, लेकिन चांद बूढ़ा हो रहा है. वह सिकुड़ रहा है. उसका शरीर ठंडा पड़ रहा है. धरती से यह पता नहीं चलता. लेकिन ये प्रक्रिया हो रही है. इसकी वजह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर होने वाले भूस्खलन और भूकंप हैं. एक नई वैज्ञानिक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है.
Australia भी 2026 में अपना मून मिशन भेजने वाला है. इसके लिए वह नासा के अर्टेमिस मिशन का सहारा लेगा. यह रोवर चांद की सतह पर मिट्टी की जांच करेगा. जिसे रिगोलिथ कहते हैं. यह उस मिट्टी के सैंपल की जांच करके ऑक्सीजन के लेवल का पता करेगा.
ऑस्ट्रेलिया भी अब भारत, अमेरिका, रूस और चीन के बाद अपना पहला मून मिशन भेजना चाहता है. वह NASA के अर्टेमिस मिशन के साथ अपना मून रोवर भेजेगा. उम्मीद है कि यह मिशन 2026 में जाएगा. यह रोवर चांद की सतह पर मिट्टी की जांच करेगा. जिसे रिगोलिथ कहते हैं. आइए जानते हैं इस मिशन के बारे में...
SpaceX का Starship रॉकेट 20 अप्रैल को उड़ा. 33 किलोमीटर ऊपर जाकर फट गया. लोग इसे असफलता कहेंगे. लेकिन इस विस्फोट पर स्पेसएक्स की टीम खुश थी. तालियां बजा रही थी. क्योंकि ये Elon Musk का फॉर्मूला है. फॉर्मूला 'सफल असफलता' का. समझिए क्या है इस शब्द के मायने...
बार्बी डॉल्स पर वैज्ञानिकों ने लिक्विड नाइट्रोजन से ब्लास्ट किया. ये किसी तरह का धमाका नहीं था. बल्कि बार्बी के ऊपर लगे धूल को साफ करने का तरीका था. क्योंकि अपोलो प्रोग्राम के समय से ही चांद की धूल एक बड़ी समस्या रही है. ये जल्दी छूटती नहीं है. इसलिए वैज्ञानिकों ने इनोवेटिव तरीका निकाला है.
अर्टेमिस-1 मिशन की सफलता के बाद NASA ने अपने Artemis-II मिशन के लिए चार एस्ट्रोनॉट्स के नाम का खुलासा कर दिया है. अब ये चार एस्ट्रोनॉट्स अगले साल के शुरुआत में चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाकर वापस धरती पर आएंगे. जानिए क्या होगा अर्टेमिस-2 मिशन और ये चार एस्ट्रोनॉट्स कौन हैं?
चंद्रमा से मंगल तक NASA के क्या मिशन चलेंगे... अब यह एक भारतीय तय करेगा. अमेरिकी स्पेस एजेंसी ने अपने नए मून टू मार्स प्रोग्राम ऑफिस (Moon to Mars Program Office) का प्रमुख एक भारतवंशी को बनाया है. इनका नाम है Amit Kshatriya. अमित अब नासा के ह्यूमन एक्सप्लोरेशन गतिविधियों का कार्यभार संभालेंगे. जानिए इस प्रोग्राम और अमित के बारे में...
25 से ज्यादा दिन की यात्रा करने के बाद NASA Artemis-1 मिशन का ओरियन स्पेसक्राफ्ट (Orion Spacecraft) धरती पर वापस आ चुका है. 11 दिसंबर 2022 को इसने प्रशांत महासागर में लैंडिंग की. इसने चांद के कई चक्कर लगाए. धरती की शानदार तस्वीरें भेजीं. अब इसकी जांच होगी.
चंद्रमा के बारे में सुना होगा कि वह अर्धचंद्राकार आकार में दिखता है. लेकिन कभी अपनी पृथ्वी को अर्धचंद्राकार आकृति में देखा है. यानी Crescent Earth. अभी हाल ही में वैज्ञानिकों ने देखा है. आपको भी दिखाते हैं कि कब, कहां और कैसे हमारी पृथ्वी अर्धचंद्राकार होती चली गई?
नासा के Artemis 1 मिशन को 14 दिन हो चुके हैं. इस दौरान ओरियन स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी से अधिकतम दूरी तक पहुंचा. इस स्पेसक्राफ्ट ने चांद के चक्कर लगाए और अब ये वापस लौट रहा है. 11 दिसंबर तक ये पृथ्वी पर पहुंच जाएगा.
NASA का आर्टिमिस (Artemis 1) मिशन मून चांद के बहुत करीब पहुंचने वाला है. बिना क्रू वाला आर्टिमस-1 (Artemis 1) ओरियन कैप्सूल (Orion capsule) चांद की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. ये चांद की कक्षा में पहुंच गया है और चांद से केवल 500 किलोमीटर की दूरी पर है.
भारत के लिए G20 समिट के हासिल क्या रहे? कल देर रात पोलैंड में हुए रॉकेट हमले से जुड़े किन सवालों के जवाब मिलने बाक़ी हैं, गुजरात में आम आदमी पार्टी कैंडिडेट की 'किडनैपिंग' के दावे में क्या नया मोड़ आया है, भारतीय ट्राइबल पार्टी में फूट से चुनाव में किसका फ़ायदा होगा और नासा का मून मिशन 'आर्टेमिस-1' क्या है, सुनिए आज के 'दिन भर' में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से.
बहुत जल्द चांद पर लैंडिंग साइट को लेकर अमेरिका और चीन में जंग हो सकती है. क्योंकि दोनों की पसंदीदा जगह है चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव. नासा ने हाल ही में 13 लैंडिंग साइट्स की खोज की थी. लेकिन इसमें से कई साइट्स ऐसी हैं कि जो चीन के साथ ओवरलैप कर रही हैं.
कुछ घंटे बाद NASA Artemis 1 मिशन की लॉन्चिंग होने वाली है. पिछले हफ्ते ईंधन लीक होने की वजह से लॉन्चिंग टाल दी गई थी. यह दूसरा प्रयास है. सवाल ये है कि आखिरकार फिर इंसान चंद्रमा पर जाना क्यों चाहता है. आइए जानते हैं इसकी वजह और प्रयासों के बारे में...