आशा पारेख
आशा पारेख (Asha Parekh) एक पूर्व अभिनेत्री है (Veteran Actress) साथ ही, वह एक फिल्म निर्देशक और निर्माता भी हैं. वह अपने समय की सबसे अधिक भुगतान पाने वाली अभिनेत्री थीं. आशा 1960 और 1970 के दशक की सबसे सफल अभिनेत्रियों में से एक थीं. उन्हें हिंदी सिनेमा में अब तक की सबसे प्रभावशाली अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है. 1992 में उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया है (Asha Parekh Padma Shri). उन्हें 2020 के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है (Asha Parekh Dada Saheb Phalke Award).
आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942 को गुजरात में हुआ था (Asha Parekh Age). उनकी मां, सलमा पारेख, एक बोहरा मुस्लिम थीं और उनके पिता, बचूभाई पारेख एक हिंदू गुजराती थें (Asha Parekh Parents). उनकी मां ने उन्हें कम उम्र में भारतीय शास्त्रीय नृत्य कक्षाओं में दाखिला दिलाया और उन्होंने पंडित बंसीलाल भारती सहित कई शिक्षकों से सीखा (Asha Parekh Classical Dancer). आशा पारेख ने शादी नहीं की है (Asha Parekh Unmarried).
पारेख ने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की थी. फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने दस साल की उम्र में फिल्म मां (1952) में कास्ट किया और फिर उन्हें बाप बेटी (1954) में भूमिका की (Asha Parekh Debit as a Child Actor).
आशा पारेख की बतौर अभिनेत्री की शुरुआत फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्म दिल देके देखो (1959) से की. इस फिल्म वह शम्मी कपूर के साथ नजर आई थीं (Asha Parekh Debut in Film). आशा के फिल्मों में जब प्यार किसी से होता है (1961), फिर वही दिल लाया हूं (1963), तीसरी मंजिल (1966), बहारों के सपने (1967), प्यार का मौसम (1969), और कारवां (1971), दो बदन (1966) , चिराग (1969), पगला कहीं का (1970) और कटी पतंग (1970) और मैं तुलसी तेरे आंगन की (1978) शामिल है (Asha Parekh Movies).
पारेख को 2002 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला. 2004 में कलाकार पुरस्कार, 2006 में अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी पुरस्कार, 2007 में पुणे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह पुरस्कार और न्यूयॉर्क में 2007 में नौवां वार्षिक बॉलीवुड पुरस्कार लॉन्ग आइलैंड और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) से लिविंग लीजेंड अवार्ड मिला मिल चुका है (Asha Parekh Awards).
पारेख अपनी नृत्य अकादमी कारा भवन की ऑनर हैं साथ ही, सांताक्रूज, मुंबई में आशा पारेख अस्पताल भी है, जिसका नाम उनके कई मानवीय योगदानों के कारण उनके सम्मान में रखा गया है (Asha Parekh Dance School and Hospital).
बुधवार को महाराष्ट्र सरकार ने आशा पारेख को राज कपूर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया. आशा को इससे पहले 2020 में दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड भी मिल चुका है. चार दशकों में 85 से ज्यादा फिल्में करने वालीं आशा को 1992 में भारत सरकार ने पद्म श्री सम्मान भी दिया था.
आशा पारेख ने 'द कश्मीर फाइल्स' के मेकर्स को फटकार लगाई है. एक्ट्रेस ने सवाल उठाया है कि 400 करोड़ का कलेक्शन करने पर जम्मू में रहने वाले कश्मीरियों को आखिर कितने पैसे दान किए थे?
फिल्म इंडस्ट्री में हर साल कलाकारों को उनकी परफॉरमेंस के लिए सम्मानित करने वाले ढेरों अवार्ड्स बंटते हैं. दादासाहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड्स 2023 से इस साल एक्टर्स की झोली में अवार्ड्स गिरने शुरू हो गए हैं. सोशल मीडिया पर इन अवार्ड्स का सेलेब्रेशन भी शुरू है. लेकिन क्या ये वही 'प्रतिष्ठित' दादासाहेब फाल्के अवार्ड है, जिसे पाना एक एक्टर के लिए बहुत बड़ी बात है?
बॉलीवुड में कई दशकों से फैंस के दिलों पर राज करने वालीं आशा पारेख ने पठान फिल्म पर चल रही कंट्रोवर्सी पर अपनी राय रखी है. इसके अलावा बॉलीवुड दीवा हमसे अपने करियर और निजी जिंदगी पर ढेर सारी बातचीत करती हैं.
आशा पारेख के मुताबिक, उन्हें ये देखकर दुख होता है कि शादियों में लड़कियां ट्रैडिशनल ड्रैसेज जैसे घाघरा-चोली को छोड़ वेस्टर्न ड्रेसेज और गाउन पहनती हैं. वे कहती हैं- सब कुछ बदल गया है. अब जो फिल्में बन रही हैं... मुझे नहीं पता. हम काफी वेस्टर्नाइज्ड हो गए हैं. गाउन पहनकर शादी में आ रही हैं लड़कियां.
वेतरन एक्ट्रेस आशा पारेख को लगता है कि आजकल के बॉलीवुड सॉन्ग्स में जिस तरह का डांस दिखाया जा रहा है, वह अजीब है. हर कोई फिल्मों में वेस्टर्न डांस कल्चर को अपनाने की कोशिश में लगा हुआ है. कोई भी इंडियन ट्रडिशन को आगे नहीं बढ़ा रहा है. डांस कम और एरोबिक्स ज्यादा एक्ट्रेसेस फिल्मों में करती नजर आ रही हैं.
आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. आशा पारेख से जब इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि अवॉर्ड मिलने पर उनका रिएक्शन कैसा था? तो इसपर एक्ट्रेस ने एक ऐसा किस्सा साझा किया, जिसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
आशा पारेख 1960s और 1970s की हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस में शुमार रही हैं. आशा पारेख की तमन्ना थी कि वो दिलीप कुमार की हीरोइन बनें. मगर अफसोस ऐसा हो नहीं सका. उन्होंने कहा- मैं दिलीप कुमार के साथ काम करना चाहती थी. युसुफ साहब के साथ काम करने का बहुत मन था. मैं उनको देखती थी मेरी बोलती बंद हो जाती थी.
68वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड में राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मु ने वेतरन एक्ट्रेस आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया. अजय देवगन को फिल्म 'तान्हाजीः द अनसंग वॉरियर' और साउथ के सुपरस्टार सूर्या को फिल्म 'Soorarai Pottru' के लिए बेस्ट एक्टर अवॉर्ड मिला. वहीं, बेस्ट हिंदी फिल्म तुलसीदास जूनियर रही है.