दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) की स्थापना 31 अक्टूबर 1966 को हुई थी (Foundation of Delhi High Court). इसकी स्थापना चार न्यायाधीशों के साथ की गई थी, जिनमें मुख्य न्यायाधीश के.एस. हेगड़े, न्यायमूर्ति आई.डी. दुआ, न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना और न्यायमूर्ति एस.के. कपूर शामिल थे (First CJI and Justice of Delhi High Court).
न्यायालय के पास अपीलीय के अलावा मूल क्षेत्राधिकार है. इस न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों की अपील केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है. दिल्ली हाई कोर्ट में 60 न्यायाधीशों की क्षमता है, जिनमें से 45 स्थायी और 15 अतिरिक्त जज हो सकते हैं (Delhi High Court Sanctioned Strength).
1882 में, लाहौर में हाई कोर्ट की स्थापना पंजाब और दिल्ली के प्रांतों पर अधिकार क्षेत्र के साथ की गई थी. 1947 भारत का विभाजन के बाद यह अलग हो गया. 1954-55 में जब पंजाब सरकार का सचिवालय चंडीगढ़ स्थानांतरित हुआ, तो हीई कोर्ट भी भी चंडीगढ़ स्थानांतरित हो गया. पंजाब के हाई कोर्ट, ने दिल्ली पर एक सर्किट बेंच के माध्यम से अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया, जो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और दिल्ली प्रशासन से संबंधित मामलों से निपटता था. राजधानी दिल्ली, इसकी जनसंख्या और अन्य विचारों को ध्यान में रखते हुए, भारतीय संसद ने दिल्ली हाई कोर्ट अधिनियम, 1966 को अधिनियमित करके, 31 अक्टूबर 1966 से प्रभावी दिल्ली हाई कोर्ट की स्थापना की गई दिल्ली हाई कोर्ट ने शुरू में दिल्ली के साथ हिमाचल प्रदेश पर भी अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया. दिल्ली हाई कोर्ट की शिमला में रेवेन्सवुड नाम के एक इमारत में हिमाचल प्रदेश की पीठ थी. हिमाचल प्रदेश अधिनियम, 1970 25 जनवरी 1971 को लागू किया गया. इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट अलग हो गया (History, Formation of Delhi High Court).
हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार का हाल ही में पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को सस्पेंड करने का आदेश गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर जारी किया गया है और प्रथम दृष्टया इस आदेश की न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता नहीं है.
नोटिस में 52 ऐसे मामलों की सूची दी गई है, जिनमें सिविल रिट याचिकाएं भी शामिल हैं. ये मामले 2013 से 2025 तक के हैं. इनमें प्रॉपर्टी टैक्स से संबंधित एनडीएमसी अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कम से कम 22 याचिकाएं शामिल हैं.
यह मामला 2010 में दायर किया गया था, जिसमें एक पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी का एक अन्य व्यक्ति के साथ व्यभिचारी संबंध है. पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी और आरोपी व्यक्ति एक होटल में एक ही कमरे में रात भर रुके थे, जिसके आधार पर उसने व्यभिचार का आरोप लगाया.
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि फीस से संबंधित मुद्दों का समाधान कानूनी ढांचे के भीतर ही किया जाना चाहिए और यह छात्रों को परेशान करने का आधार नहीं बनना चाहिए. यह आदेश एक शिकायत पर की गई जांच के बाद आया, जिसमें कई खुलासे हुए और छात्रों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई अंतरिम निर्देश जारी किए गए. निर्देशों में छात्रों को तुरंत नियमित कक्षाओं में लौटाने का निर्देश भी शामिल है.
एमसीडी के वकील ने अदालत को बताया कि धार्मिक ढांचा स्कूल से पहले का बना हुआ है और यदि कोई शिकायत है, तो इसे धार्मिक समिति के पास ले जाना चाहिए, जो अधिकृत धार्मिक स्थलों के मामलों को देखती है. हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दों का समाधान जरूरी है.
महाराजा डॉ. करणी सिंह के उत्तराधिकारियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर की है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से दिल्ली स्थित बीकानेर हाउस का बकाया किराए की मांग की है. उत्तराधिकारियों ने अपनी इस याचिका में सिंगल जज के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें उत्तराधिकारियों को कोई राहत देने से इनकार कर दिया था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने 28 मार्च को एक बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा कि फूड बिल पर सर्विस चार्ज देना ज़रूरी नहीं है और इसे रेस्टोरेंट या होटल द्वारा अपने मनमर्जी से वसूला नहीं जा सकता है
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिश पर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के ट्रांसफर को मंजूरी दे दी है. अब वे दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट जाएंगे, जो उनका मूल कार्यक्षेत्र है. यह फैसला एक विवाद के बीच लिया गया, जिसमें उनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में कैश मिलने की खबर आई थी.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में मांग की गई कि दिल्ली पुलिस को जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया जाए. 3 जजों की कमेटी बनाने का कोई मतलब नहीं है. जांच पुलिस को करनी चाहिए.
कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा से आज 1 बजे होगी पूछताछ, जांच कमेटी ने भेजा समन
एनआईए ने 2017 के टेरर-फंडिंग केस में इंजीनियर राशिद को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत 2019 में गिरफ्तार किया था, जिसके बाद से वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं.
बार संघों ने ये भी सवाल उठाया कि 14 मार्च की घटना के बावजूद कोई FIR अभी तक दर्ज क्यों नहीं की गई? उन्होंने कहा कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो देशभर के उच्च न्यायालयों के बार संघ धरना प्रदर्शन करेंगे.
जस्टिस वर्मा ने अपने बचाव की तैयारी के लिए बड़े वकीलों से संपर्क किया है. तीन न्यायाधीशों की जांच पैनल के समक्ष पेश होने से पहले कानूनी सलाह मांगी है और वकीलों की एक टीम से परामर्श किया गया है.
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा ने इन-हाउस जांच समिति के सामने पेश होने से पहले वरिष्ठ वकीलों से कानूनी सलाह ली है. सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल, मेनका गुरुस्वामी, अरुंधति काटजू और तारा नरूला ने जस्टिस वर्मा से उनके लुटियंस दिल्ली स्थित निवास पर मुलाकात की. इस दौरान जस्टिस वर्मा ने उनसे कानूनी राय मांगी.
तीन जजों की एक टीम मंगलवार को करीब 45 मिनट तक जस्टिस वर्मा के घर रुकी और इस दौरान तीनों जज उस कमरे में भी गए जहां जले हुए नोट मिले थे. जांच किस तरीके और किन नियमों के तहत आगे बढ़ेगी, यह कमेटी को खुद ही तय करना है.
कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए आवामी इतिहाद पार्टी (AIP) के मुख्य प्रवक्ता इनाम उन नबी ने कहा कि हम लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ खड़े रहने और यह सुनिश्चित करने के लिए माननीय न्यायपालिका के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि इंजीनियर राशिद सभी बाधाओं के बावजूद संसद में अपने लोगों का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होंगे.
एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, "मामले की जांच उचित समय के अंदर जल्द पूरी होनी चाहिए. लेकिन इसके साथ ही मैं कहना चाहूंगा कि जांच एक सही प्रक्रिया के साथ जरूर होनी चाहिए."
दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा पर आरोप है कि उनके घर से भारी मात्रा में कैश मिला. फिलहाल उनकी इन-हाउस जांच चल रही है. पहले भी कुछ मौकों पर न्यायाधीशों के आचरण शक के दायरे में आ चुके. लेकिन क्या आम लोगों की तरह जजों पर कार्रवाई होती है, और अब तक ऐसे मामलों में क्या हो चुका?
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि राशिद इंजीनियर ने चुनाव लड़ा और जीते. उसके बाद शपथ लेने के लिए संसद गए. फिर संसद के सत्र में भी शामिल हुए. अब दोबारा संसद सत्र में शामिल होने के लिए कोर्ट के सामने अर्जी दी है. इस मामले में वह 10 साल जेल में रहें और 10 साल तक सांसद बने रहे तो उनके अधिकारों का क्या होगा?
इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिवक्ताओं ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सैकड़ों की संख्या में अधिवक्ता पुरजोर तरीके से जस्टिस यशवंत वर्मा का विरोध कर रहे हैं. उनकी मांग है कि दिल्ली हाई कोर्ट से उनका ट्रांसफर इलाहाबाद के लिए ना किया जाए.
जस्टिस यशवंत को न्यायिक कार्य से हटा दिया गया है, साथ ही उनके तबादले की सिफारिश भी सुप्रीम कॉलेजियम ने कर दी है. उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि अगर जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद भेजा गया तो वो हाईकोर्ट में न्यायिक कार्य ठप कर देंगे. VIDEO