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देवशयनी एकादशी

देवशयनी एकादशी

देवशयनी एकादशी

देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) आषाढ़ मास यानी जून-जुलाई के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं चंद्र दिवस (एकादशी) को मनाया जाता है. इस साल 17 जुलाई से शरू हो रहा है. पुराणों की माने तो देवशयनी एकादशी से श्रीहरि विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. इस समय में सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेज कम होता जाता है. इसलिए कहा जाता है कि देव शयन हो गए हैं. यानी देव सो गए हैं. माना जाता है कि तेज तत्व या शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं होते हैं. इसलिए देव सोने के बाद शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. 

इस एकादशी से अगले चार माह तक में चले जाते हैं. इसलिए अगले चार माह तक शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं. इस अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता है. इस एकादशी से तपस्वियों का भ्रमण भी बंद हो जाता है. इन दिनों में केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है.

देवशयनी एकादशी पर रात्रि काल में विशेष विधि से भगवान विष्णु की पूजा होती है. उन्हें पीली वस्तुएं, विशेषकर पीला वस्त्र अर्पित करना चाहिए. श्री हरि को धूप, दीप, फल, फूल आर्पित भी करना चाहिए और आरती भी करें. 

देवशयनी एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए.

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