EWS
भारत में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को लोगों की एक उपश्रेणी है बनाई गई है जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय सलाना 8 लाख से कम है. साथ ही, वह पूरे भारत में SC/ST/OBC/MBC जैसी किसी भी श्रेणी से संबंधित नहीं होते हैं. केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में EWS आरक्षण के लिए मानदंड देश भर में समान हैं, लेकिन राज्य अपने मुताबिक इसे लागु करता है. आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल ने ईडब्ल्यूएस कोटा लागु किया है (EWS Quota in Indian States).
7 जनवरी 2019 को, केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दी थी. कैबिनेट ने फैसला किया कि यह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ओबीसी श्रेणियों के लिए मौजूदा 50 फीसदी आरक्षण से अधिक होगा.
भारत सरकार ने 8 जनवरी 2019 को लोकसभा में ईडब्ल्यूएस कोटा विधेयक पेश किया, जिसके लिए उसने भारतीय संविधान में 124वां संशोधन किया. इसे उसी दिन पारित भी किया गया (124th Constitutional Amendment). यह विधेयक 9 जनवरी 2019 को राज्यसभा में भी पारित कर दिया गया. पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 12 जनवरी 2019 को विधेयक को मंजूरी दी और विधेयक पर एक गजट जारी किया गया, जिसने इसे कानून में बदल दिया. यह 14 जनवरी 2019 को पूरी तरह से लागू हो गया. भारतीय संविधान के 103वें संशोधन के तहत अनुच्छेद 15(6) और 16(6) में संशोधन किया गया, जिससे ईडब्ल्यूएस कोटा 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए सक्षम हुआ. कई राज्य मंत्रिमंडलों ने कानून को मंजूरी दी और 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लागू करने की घोषणा की (Constitutional Amendments for EWS Quota) .
25 जनवरी 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में जनरल-ईडब्ल्यूएस कोटा को दिए गए 10 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. 6 अगस्त 2020 को कोर्ट ने फैसला किया कि 5 सदस्यीय बेंच मामले की सुनवाई करेगी.
7 नवंबर 2022 को आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है. 5 जजों की बेंच ने 3-2 से इसका समर्थन किया है. हालांकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और रविंद्र भट ने इसके खिलाफ फैसला दिया है. यानी, 10 फीसदी आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन माना है (Supreme Court Upholds EWS Quota).
कोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया है कि आधार जमा करना अनिवार्य बनाने से अनुच्छेद 21 द्वारा संरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और इसे संवैधानिक रूप से उचित नहीं ठहराया जा सकता है.
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस पारदीवाला ने EWS आरक्षण के समर्थन में फैसला सुनाया. जस्टिस पारदीवाला ने कहा, शिक्षा और रोजगार के स्वीकार्य मानकों को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के वर्गों को पिछड़े वर्गों से हटा दिया जाना चाहिए ताकि उन वर्गों पर ध्यान दिया जा सके जिन्हें वास्तव में सहायता की आवश्यकता है. इसलिए पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके और निर्धारण के तरीकों की समीक्षा करने की जरूरत है.
हमारे देश में आरक्षण किसे मिलना चाहिए? ये सवाल जितना सीधा है, इसका जवाब उतना ही मुश्किल है और ये वो सवाल है, जिसे हमारे देश के नेताओं ने 75 वर्षों तक वोटबैंक की राजनीति के लिए नज़रअन्दाज़ किया है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में ये कहा कि देश में सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में जो 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, वो पूरी तरह संवैधानिक है और इस पर अब कोई रोक नहीं लगाई जाएगी. EWS आरक्षण को कैसे और क्यों मिली SC की मंज़ूरी? क्या है इसके कानूनी प्रावधान, जानिए.
EWS Category reservation: EWS आरक्षण 2019 में मोदी सरकार द्वार संविधान में 103वें संशोधन के माध्यम से लागू किया गया था. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में 40 से अधिक याचिकाएं दायर की गई थीं जिस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज, 7 नवंबर 2022 को इस पर संवैधानिक मुहर लगा दी है.