फॉल्कन 9 रॉकेट
फॉल्कन 9 रॉकेट एक आंशिक रूप से Reusable Two-Stage-To-Obit Medium-lift लॉन्च वाहन है जिसे संयुक्त राज्य के स्पेसएक्स (SpaceX United States) ने डिजाइन और निर्मित किया है. पहले चरण का सबसे नया संस्करण पृथ्वी पर वापस आ सकता है और कई बार फिर से उड़ाया जा सकता है.
यह क्रायोजेनिक तरल ऑक्सीजन और रॉकेट-ग्रेड केरोसिन (RP-1) का उपयोग करते हुए, पहले और दूसरे दोनों चरण स्पेसएक्स मर्लिन इंजन द्वारा संचालित होते हैं. इसका नाम काल्पनिक स्टार वार्स अंतरिक्षयान, मिलेनियम फॉल्कन और रॉकेट के पहले चरण के नौ मर्लिन इंजनों से लिया गया है (Falcon 9 Rocket, SpaceX Merlin engines).
रॉकेट संस्करण v1.0 (2010-2013), v1.1 (2013-2016), v1.2 फुल थ्रस्ट (2015) के साथ विकसित हुआ है, जिसमें ब्लॉक 5 फुल थ्रस्ट संस्करण भी शामिल है, जो मई 2018 से उड़ान भर रहा है (Falcon 9 versions).
फॉल्कन 9, पहला चरण वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने और दूसरे चरण से अलग होने के बाद लंबवत लैंडिंग में सक्षम है. यह उपलब्धि पहली बार दिसंबर 2015 में उड़ान 20 पर हासिल की गई थी. तब से, स्पेसएक्स ने सौ से अधिक बार बूस्टर को सफलतापूर्वक उतारा है. यह व्यक्तिगत पहले चरणों में बारह बार उड़ान भर चुका है (Falcon 9 Launches).
फाल्कन 9 22,800 किलोग्राम (50,300 LB) तक कम पृथ्वी कक्षा (LEO), 8,300 किलो (18,300LB) तक भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा (GTO) तक पेलोड उठा सकता है.
2021 के अंत में, एक फाल्कन 9 का उपयोग IXPE जांच को केएससी से भूमध्यरेखीय कक्षा में लॉन्च करने के लिए पोस्ट-लॉन्च कक्षीय विमान परिवर्तन के साथ किया गया था (Falcon 9, launch the IXPE probe 2021).
Elon Musk के SpaceX के पहले भारतीय मिशन के जानें फायदे, जानिए क्या काम करेगा ISRO का GSAT-N2?
Elon Musk की कंपनी SpaceX ने भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO के नए सैटेलाइट GSAT-20 या GSAT-N2 को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया है. लॉन्चिंग स्पेसएक्स के रॉकेट फॉल्कन-9 से की गई. 34 मिनट में यह सैटेलाइट अपने निर्धारित स्थान पर पहुंचा दी गई. सैटेलाइट की सेहत दुरुस्त है. कंट्रोल अब इसरो के हाथ में है.
ISRO के श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट में अभी दो लॉन्च पैड हैं. लेकिन वह तीसरे लॉन्च पैड को बनाने की तैयारी कर चुका है. इस लॉन्च पैड से वो रॉकेट छोड़े जाएंगे जो दूसरे ग्रहों और ह्यूमन स्पेसफ्लाइट की लिए जरूरी होंगे. जैसे- NGLV रॉकेट. इससे कई तरह के मिशन होंगे. ये रॉकेट लॉन्च पैड पर ही लिटाकर असेंबल किया जाएगा.
SpaceX ने अपने महत्वपूर्ण मिशन Polaris Dawn को लॉन्च कर दिया है. लॉन्चिंग केप केनवरल से फॉल्कन-9 रॉकेट के जरिए की गई. अब 12 सितंबर को यानी दो दिन बाद अंतरिक्ष में पहली निजी सिविलियन स्पेस वॉक की जाएगी. आइए जानते हैं कि इस मिशन के पीछे एलन मस्क का मकसद क्या है?
Sunita Williams अब नासा के कॉमर्शियल क्रू प्रोग्राम के Crew-9 के साथ अगले साल फरवरी में धरती पर लौटेंगी. यह नासा और स्पेसएक्स का संयुक्त अंतरिक्ष मिशन है. आइए जानते हैं कि क्रू-9 मिशन है क्या? ये कब स्पेस स्टेशन जाएगा? कब वहां से लौटेगा? क्योंकि यही मिशन सुनीता और बुच को लेकर धरती पर लेकर आएगा.
NASA अगले साल फरवरी में सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर को धरती पर वापस लाएगा. इसके लिए एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के ड्रैगन क्रू कैप्सूल की मदद लेगा. ये कैप्सूल 24 सितंबर 2024 को स्पेस स्टेशन पर भेजा जाएगा. इसमें चार लोग जाएंगे. लेकिन लौटते समय इसी में सुनीता और बुच वापस आएंगे. आइए जानते हैं कि ड्रैगन क्रू कैप्सूल क्या है?
इसरो-भारतीय वायुसेना के एस्ट्रोनॉट्स ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर स्पेस स्टेशन जाने के लिए ह्यूस्टन पहुंच गए हैं. दोनों की ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी है. इनमें से कोई एक ही स्पेस स्टेशन जाएगा. क्या इनमें से किसी एक को स्पेस स्टेशन पर फंसी सुनीता विलियम्स से मिलने का मौका मिलेगा?
SpaceX को तगड़ा झटका लगा है. एलन मस्क की इस स्पेस कंपनी ने पिछले हफ्ते फॉल्कन 9 रॉकेट से स्टारलिंक सैटेलाइट लॉन्च किए. जिसमें से 20 स्टारलिंक सैटेलाइट गिर गए. ये वायुमंडल में आते ही जल गए. बताया जा रहा है कि ये दिक्कत रॉकेट में आई किसी गड़बड़ी की वजह से हुई है. फिलहाल मामले की जांच चल रही है.
भारत बहुत जल्द ऐसा सैटेलाइट छोड़ने जा रहा है, जिससे देशभर में और बेहतर ब्रॉडबैंड कनेक्शन हो जाएगा. साथ ही विमान उड़ाते समय कॉमर्शियल पायलट ज्यादा बेहतर संचार स्थापित कर पाएंगे. यह एक कम्यूनिकेशन सैटेलाइट है, जिससे पूरे देश समेत आसपास के इलाकों को भी मदद मिल सकती है.
इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब चांद पर किसी निजी कंपनी का यान चंद्रमा की सतह पर उतरा है. अमेरिकी कंपनी इंट्यूशिव मशींस का मून लैंडर ओडिसियस चांद पर 22 फरवरी 2024 को लैंड कर गया. करीब 52 साल बाद अमेरिका ने अपना कोई स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह पर उतारा है.
भारतीय एस्ट्रोनॉट को अमेरिका अगले साल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर भेजा जाएगा. इन्हें दो हफ्ते के लिए स्पेस स्टेशन पर रहना होगा. इंडियन एस्ट्रोनॉट SpaceX के ड्रैगन कैप्सूल में बैठकर अंतरिक्ष की यात्रा करेगा. लॉन्चिंग Falcon 9 रॉकेट से की जाएगी. आइए जानते हैं क्या है भारतीय एस्ट्रोनॉट को ISS भेजने की तैयारी...
रूस, चीन या उत्तर कोरिया अब अमेरिका पर हाइपरसोनिक मिसाइल से भी हमला नहीं कर पाएंगे. अमेरिका ने अंतरिक्ष में शुरू कर दी है बड़ी तैयारी. वह अंतरिक्ष में ऐसे मिलिट्री सैटेलाइट्स का जाल बिछा रहा है जो किसी भी तरह की क्रूज, बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करके अलर्ट दे देगा. 10 सैटेलाइट्स छोड़ भी दिए गए हैं.
अंतरिक्ष में पानी से चलने वाला पहले सैटेलाइट पहुंच गया है. SpaceX ने ट्रांसोपोर्टर-6 मिशन के तहत फॉल्कन-9 रॉकेट से Vigoride-5 सैटेलाइट को लॉन्च किया. सैटेलाइट निर्धारित कक्षा में पहुंच गई है. बखूबी काम कर रही है. इसमें वाटर प्लाज्मा थ्रस्टर्स तकनीक लगाई गई है. जो इसे ऊर्जा दे रही है. भविष्य में सैटेलाइट्स इसी तकनीक से उड़ाए जाएंगे.
अब निजी कंपनियां भी चांद पर जा रही है. जापानी स्टार्टअप ispace ने चंद्रमा पर हाकुतो-आर (Hakuto-R) नाम का मिशन भेजा है. जापान ने पहली बार कोई मून लैंडर भेजा है. इस मिशन को फ्लोरिडा के केप केनवरल से स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट से लॉन्च किया गया.
भारत में भी वैसे ही रॉकेट बनने वाले हैं, जैसे Elon Musk की कंपनी स्पेसएक्स बनाती है. यानी रीयूजेबल रॉकेट जो खुद ही वापस लौट आएं. सीधी लॉन्चिंग करे. सीधे लैन्डिंग करें. अगर ऐसा होता है तो भारत पूरी दुनिया में सस्ती और ज्यादा मात्रा में सैटेलाइट लॉन्चिंग का बाहुबली बन जाएगा.
ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई निजी कंपनी अपना रोवर चंद्रमा पर भेज रही हो. इसी महीने की 30 तारीख को SpaceX अपने फॉल्कन-9 रॉकेट से टोक्यो की निजी कंपनी ispace का Hakuto-R lander लेकर चांद के लिए निकलेगा. इस लैंडर के साथ ही UAE का एक रोवर भी चांद के लिए रवाना होगा.