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ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग

पिछली एक से दो शताब्दियों में पृथ्वी की सतह के पास औसत वायु तापमान में हुई बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं (Definition of Global Warming). 20वीं शताब्दी के मध्य से जलवायु वैज्ञानिकों ने मौसम की तमाम घटनाओं (जैसे तापमान, वर्षा और तूफान) और जलवायु पर उससे जुड़े प्रभावों (जैसे महासागरीय धाराओं और वातावरण की रासायनिक संरचना) का बड़े स्तर पर अध्ययन किया है. इन आंकड़ों से संकेत मिलता है कि भूगर्भिक समय के बाद से पृथ्वी की जलवायु लगभग पूरी तरह से बदल गई है (Change in Earth Climate). औद्योगिक क्रांति के बाद से मानव गतिविधियों का मौजूदा जलवायु परिवर्तन की गति और सीमा पर प्रभाव बढ़ रहा है (Global Warming after Industrial Revolution). खासकर जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल और गैस के जलने के कारण उससे गर्मी बढ़ाने वाली गैसों का उत्सर्जन होता है और तापमान बढ़ने लगता है (Causes of Global Warming).

जमीन पर तापमान वैश्विक औसत से लगभग दोगुना तेजी से बढ़ा है. रेगिस्तान का विस्तार हो रहा है, जबकि गर्मी की लहरें और जंगल की आग अधिक आम होती जा रही है. आर्कटिक में बढ़ती गर्मी ने पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने, ग्लेशियर के पीछे हटने और समुद्री बर्फ के नुकसान में योगदान दिया है. उच्च तापमान ज्यादा तेज तूफान और अन्य एक्स्ट्रीम वेदर कंडीशन का कारण बन रहे हैं. पहाड़ों, प्रवाल भित्तियों और आर्कटिक में तेजी से पर्यावरणीय परिवर्तन कई प्रजातियों को स्थानांतरित होने या विलुप्त होने के लिए मजबूर कर रहा है. जलवायु परिवर्तन से लोगों को भोजन और पानी की कमी, बाढ़ में वृद्धि, अत्यधिक गर्मी, अधिक बीमारी और आर्थिक नुकसान का खतरा बढ़ा है (Effects of Global Warming). 

इनमें से कई प्रभाव पहले से ही वार्मिंग के मौजूदा स्तर (1.2 डिग्री सेल्सियस) पर महसूस किए जा रहे हैं. वार्मिंग के बढ़ने से इनके प्रभाव में और बढ़ोतरी होगी जो टिपिंग प्वॉइंट्स को ट्रिगर कर सकती है. 2015 के पेरिस समझौते (2015 Paris Agreement) के तहत, दुनिया के तमाम देश सामूहिक रूप से "2 डिग्री सेल्सियस से कम" वार्मिंग रखने के लिए सहमत हुए. हालांकि, समझौते के तहत किए गए वादों के बावजूद, सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग लगभग 2.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगी (Rise in Temperature). वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक उत्सर्जन को आधा करने और 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की आवश्यकता होगी (Net-Zero-Emission)

कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिए जीवाश्म ईंधन को जलाने से बचना होगा और गैर-कार्बन स्रोतों से पैदा हुई बिजली का उपयोग करने की जरूरत होगी. कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को सिलसिलेवार तरीके से बंद करना होगा, पवन, सौर और अन्य प्रकार की नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना होगा. इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच करना होगा और ऊर्जा संरक्षण के उपाय ढूंढने होंगे (Mitigation of Global Warming).

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