जमात-ए-इस्लामी एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे बांग्लादेश (Bangladesh) में कट्टरपंथी माना जाता है. यह राजनीतिक पार्टी पूर्व पीएम खालिदा जिया की समर्थक पार्टियों में शामिल है. जमात पर प्रतिबंध लगाने का हालिया निर्णय 1972 में 'राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म का दुरुपयोग' के लिए प्रारंभिक प्रतिबंध के 50 साल बाद लिया गया है (Jamaat-E-Islami).
जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1941 में ब्रिटिश शासन के तहत अविभाजित भारत में हुई थी. 2018 में बांग्लादेश हाई कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए चुनाव आयोग ने जमात का पंजीकरण रद्द कर दिया था. इसके बाद जमात चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गई थी.
बांग्लादेश आर्मी के एक अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल एसएम कमरुल हसन रावलपिंडी दौरे पर थे. उनकी आगवानी में पाकिस्तान बिछ ही गया. एक मेज पर जिन्ना की तस्वीर थी. इसके एक ओर बांग्लादेश का झंडा था दूसरी ओर पाकिस्तान का. जिस पाकिस्तानी आर्मी ने 1971 की बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में बांग्लादेशियों को रौंद दिया था. उसी पाकिस्तान आर्मी ने बांग्लादेश को अपना 'भातृ राष्ट्र' बताया.
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ लगातार हिंसा हो रही है. इस हिंसा के पीछे कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी का हाथ बताया जा रहा है, जो हिंदुओं से नफरत करता है और उन्हें वहां से खदेड़ने की फिराक में है. चटगांव शहर के व्यापारिक क्षेत्रों में हिंदू व्यापारियों का वर्चस्व है, जो इन संगठनों को खटकता है.
बांदीपोरा विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार ने सिकंदर वानी ने प्रचार के दौरान आजतक से खास बातचीत में बताया कि पहले मैं आपको बता दूं की मैं पैरोल पर नहीं हूं, मेरी बेल हो चुकी है और हम यहां लंबे वक्त से इलेक्शन में हिस्सा लेते रहे हैं. लोगों का काफी अच्छा समर्थन हमे मिल रहा है.
बांग्लादेश में बैन हटते ही भारत को लेकर क्या बोले जमात-ए-इस्लामी प्रमुख? दी ये नसीहत.
बांग्लादेश में सियासी उठापटक के बाद अंतरिम सरकार के गठन की तैयारी शुरू हो गई है. नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुना गया है. वहीं दूसरी तरफ जमात-ए-इस्लामी ने माना कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हुए हैं. देखिए VIDEO
बांग्लादेश में एक आंदोलन ने शेख हसीना की सरकार को पलट दिया है. इसमें इस्लामिक छात्र शिविर के कैडर और जमाते इस्लामी की छात्र इकाई ने अहम भूमिका निभाई है. भारतीय खुफिया एजेंसियों की सूत्रों के हवाले से खबर है की पिछले दो सालों से इस्लामिक छात्र शिविर के कैडर ने बांग्लादेश के अलग-अलग विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और यही से यूनिवर्सिटी छात्रों को भड़काने का काम शुरू हुआ.
बांग्लादेश में हुए तख़्तापलट के बाद अब सवाल है कि, आख़िर अब पड़ोसी देश में किसका राज होगा. क्या सेना बांग्लादेश पर राज करेगी? तो जानते हैं बांग्लादेश में सत्ता के दावेदार कौन-कौन हैं.
Bangladesh Political Situation: बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद अब सवाल है कि आखिर अब पड़ोसी देश में किसका राज होगा. क्या सेना बांग्लादेश पर राज करेगी? तो जानते हैं बांग्लादेश में सत्ता के दावेदार कौन-कौन हैं...
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है. उनके इस्तीफे की मांग को लेकर कई दिनों से हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे. इस्तीफा देने के बाद शेख हसीना ने बांग्लादेश भी छोड़ दिया है. लेकिन इसी तरह का वाकया 1996 में भी हुआ था. तब शेख हसीना विपक्ष में थीं और उनके प्रोटेस्ट के चलते खालिदा जिया की सरकार गिर गई थी.
शेख हसीना सरकार ने हाल ही में जमात-ए-इस्लामी, इसकी छात्र शाखा और इससे जुड़े अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह कदम बांग्लादेश में कई सप्ताह तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद उठाया गया था. कहा जा रहा है कि सरकार की इस कार्रवाई के बाद ये संगठन शेख हसीना सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं.
जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने का फैसला शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के नेतृत्व वाले 14 पार्टी गठबंधन की मीटिंग में लिया गया. मीटिंग के दौरान कथित रूप से सहयोगी पार्टियों ने भी कट्टर पार्टी पर बैन लगाने की अपील की. मसलन, यह एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे बांग्लादेश में कट्टरपंथी माना जाता है.
पीएम शेख हसीना ने बैठक में कहा कि खुफिया रिपोर्टों के अनुसार जमात-शिविर के लोगों ने राजधानी में आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया और सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचाया. बता दें 2018 में बांग्लादेश हाई कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए चुनाव आयोग ने जमात का पंजीकरण रद्द कर दिया था. इसके बाद जमात चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गई थी.
बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगा दिया गया है. हाल के विरोध-प्रदर्शनों में पार्टी के स्टूडेंट विंग पर हिंसा करने का आरोप है. शेख हसीना सरकार ने आरोप लगाया कि पार्टी ने हालिया प्रदर्शनों का राजनीतिक फायदा उठाया है. जमात पार्टी की स्थापना अविभाजित भारत में हुई थी.
जमात-ए-इस्लामी से वार्ता के लिए सरकार प्रतिनिधिमंडल में अताउल्लाह तरार, कश्मीर मामलों के मंत्री इंजीनियर अमीर मकाम, वरिष्ठ पीएमएल-एन नेता तारिक फजल चौधरी और प्रधानमंत्री के मीडिया समन्वयक बद्र शाहबाज शामिल थे. तरार ने कहा कि जेआई ने दस मांगों की एक सूची प्रस्तुत की, जिनमें से अधिकांश बिजली से संबंधित मुद्दों से संबंधित हैं.