कोसी नदी (Kosi River) तिब्बत और नेपाल से बहते हुए भारत के बिहार राज्य में प्रवेश करती है. कोसी नदी को 'बिहार का शोक' (The Sorrow of Bihar) कहा जाता है क्योंकि हर साल इस नदी में बाढ़ आती है जिसके कारण राज्य को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. यह अत्यधिक तलछट वाली नदी है और अक्सर अपना मार्ग बदलती रहती है.
कोसी नदी को इसकी सात ऊपरी सहायक नदियों के कारण सप्तकोशी भी कहा जाता है. इनमें पूर्व में कंचनजंगा क्षेत्र से निकलने वाली तमूर नदी और तिब्बत से अरुण नदी और सन कोसी शामिल हैं. पूर्व से पश्चिम तक सन कोशी की सहायक नदियां दूध कोशी, लिखू खोला, तमकोशी नदी, भोटे कोशी और इंद्रावती हैं. सप्तकोशी उत्तरी बिहार में प्रवेश करती है जहां यह कटिहार जिले के कुर्सेला के पास गंगा में मिलने से पहले शाखाओं में विभाजित हो जाती है. कोसी घाघरा और यमुना के बाद गंगा की तीसरी सबसे बड़ी सहायक नदी है. कोसी नदी 720 किमी लंबी है और तिब्बत, नेपाल और बिहार में लगभग 74,500 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है.
बिहार के आधे जिलों में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है. अधिकांश जगहों पर नदियों का जल स्तर अभी भी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है. यहां कोसी, गंडक, बागमती, महानंदा और गंगा समेत अधिकांश नदियों का रौद्र रूप देखने को मिल रहा है.
घर, सड़क, पुल और ऊंची इमारतों को मानो पानी ने लील लिया हो. लाखों जिंदगियां अचानक से बेसहारा हो गई हैं. आंख की जद तक चारों ओर सिर्फ पानी ही पानी है, जैसे ये कोई सूखा इलाका नहीं बल्कि किसी दरिया के बीच का कोई हिस्सा हो. ये नजारा इन दिनों बिहार के करीब 13 जिलों का है. देखें...
बिहार एक बार फिर सैलाब के आगे सरेंडर करता दिख रहा है. वर्षों से बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा झेलने वाले बिहार में बारिश नहीं हो रही है लेकिन आफत सीधे आसमान से बरस रही है. पानी ने ऐसा प्रकोप दिखाया कि हजारों लोग पलायन को मजबूर हैं.
बिहार के आधे जिलों में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है....ज्यादातर जगहों पर नदियों का जल स्तर अभी भी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है. ...इस बीच कोसी नदी सबसे ज्यादा कहर ढा रही है. ये नदी 250 सालों में करीब 120 किलोमीटर रास्ता बदल चुकी है.
राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, अररिया, किशनगंज, गोपालगंज, शिवहर, सीतामढी, सुपौल, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, मधुबनी, दरभंगा और सारण समेत 17 जिले बाढ़ प्रभावित हैं. यहां भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों के जरिए खाने के पैकेट और अन्य राहत सामग्री गिराई जा रही है.
कोसी नदी के बारे में कहा जाता है कि यह लगातार दिशा बदलते रहती है जिसकी वजह से हर बार नए इलाके इसकी चपेट में आ जाते हैं. जैसे ही कोसी नदी बड़ी नदियों में मिलती है तो पानी का फ्लो तेज हो जाता है और यह विभिन्न क्षेत्रों में फैल जाता है.
बिहार में त्राहिमाम मचा है, क्योंकि नेपाल से आ रहा पानी, बिहार के लोगों की जिंदगानी पर भारी पड़ रहा है. उत्तर बिहार के करीब 18 जिलों में बाढ़ का कहर है. गांव के गांव डूब रहे हैं, सड़कों पर सैलाब उमड़ा हुआ है, नदियों के तटबंध टूट रहे हैं और लोग अपने आशियाने से छूट रहे हैं. देखें शंखनाद.
कोसी जब रौद्र रूप धारण करती है तो सबकुछ तबाह कर देती है. लाखों लोगों को बेघर होना पड़ता है. खेतों में रेत के टीले बन जाते हैं, जिससे वहां खेती करना भी मुश्किल हो जाता है. इसके रौद्र रूप को देखते हुए ही कोसी को 'बिहार का शोक' भी कहते हैं.
घर, सड़क, पुल और ऊंची इमारतों को मानो पानी ने लील लिया हो. लाखों जिंदगियां अचानक से बेसहारा हो गई हैं. आंख की जद तक चारों ओर सिर्फ पानी ही पानी है, जैसे ये कोई सूखा इलाका नहीं बल्कि किसी दरिया के बीच का कोई हिस्सा हो. ये नजारा इन दिनों बिहार के करीब 13 जिलों का है जहां नेपाल के रास्ते आ रही नदियों ने तबाही मचा रखी है.
कोसी में बढ़ते हुए जलस्तर के साथ प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती बांध को बचाना है. सहरसा जिले के नोहट्टा प्रखंड में कोसी पर बना बांध खतरे में है और इसे सुरक्षित रखने के प्रयास जारी हैं. देखिए VIDEO
बिहार में कोसी नदी ने रौद्र रूप धारण कर लिया है जिसके बाद पूरे उत्तर बिहार के बाढ़ में डूबने का खतरा मंडराने लगा है. लोगों को ऊंची जगहों पर जाने की चेतावनी दी जा रही है जिसके बाद लोग अपना घरबार छोड़ रहे हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्होंने कोसी नदी में बीते 50 सालों में इतना पानी कभी नहीं देखा था.
उत्तर बिहार में जल प्रलय की आहट ने लोगों को दहशत में डाल दिया है. कोसी बराज से बीते 56 सालों में सबसे ज्यादा पानी छोड़ा गया है इसके बाद भी बराज पर बने पुल के ऊपर से पानी बह रहा है. उत्तर बिहार के ज्यादातर जिलों में बाढ़ का पानी फैलने लगा है जिसके बाद जल संसाधन विभाग के इंजीनियरों की टीम को हाई अलर्ट पर रखा गया है.
बिहार में बाढ़ के संकट को देखते हुए राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार भी एक्शन में है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय NDRF के साथ आज समीक्षा बैठक करेंगे. बाढ़ के खतरे को देखते हुए NDRF को अलर्ट रखा गया है.
बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी ने एक बार फिर रौद्र रूप धारण कर लिया है, बीरपुर में कोसी नदी पर बने बराज से सुबह पांच बजे तक कुल 6.61 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जो 56 सालों में सबसे ज्यादा है. पानी छोड़े जाने के बाद महानंदा जैसी नदियां उफान पर हैं और कटिहार, पूर्णिया के कई इलाके जलमग्न हो चुके हैं. लोगों को कटाव का सामना भी करना पड़ रहा है.
बिहार में बाढ़ ने हाहाकार मचा दिया है. कोसी नदी के रौद्र रूप धारण करने के बाद उत्तर बिहार, पूर्वी बिहार, मध्य विहार के कई जिलों और शहरों में तेजी से पानी भर रहा है. लोगों को बचाने के लिए राज्य सरकार ने एसडीआरएफ की टीम उतारी है. राज्य के जल संसाधन मंत्री विजय चौधरी ने कहा है कि हम किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार हैं और तटबंधों को बचाने के लिए इंजीनियर 24 घंटे मॉनिटरिंग कर रहे हैं.
बिहार सरकार ने शनिवार को वाल्मीकिनगर और बीरपुर बैराज से पानी छोड़े जाने के बाद राज्य के उत्तरी और मध्य भागों में कोसी, गंडक और गंगा जैसी उफनती नदियों के आसपास बाढ़ की चेतावनी जारी की है.
इन दिनों गंडक, कोसी, बागमती, कमला बलान और गंगा समेत कई नदियां ऊफान पर हैं. लाखों लोगों की जिंदगी मुसीबत में है. लोगों को 2008 वाला डर सताने लगा है. दरअसल, बिहार में 2008 में आई तबाही के निशान अभी भी हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2008 में भयानक बाढ़ से 526 लोगों की मौत हुई थी.