आकाशगंगा
मिल्की वे (Milky Way) एक आकाशगंगा (Galaxy) है, जिसका हिस्सा हमारा सौर मंडल (Solar System) है. पृथ्वी से इस आकाशगंगा के दखने के आधार पर इसका नाम मिल्की वे पड़ा. इसे सिर्फ टेलिस्कोप से ही देखा जा सकता है.
मिल्की वे शब्द ग्रीक से लिया गया एक लैटिन अनुवाद है, जिसका अर्थ है "दूधिया चक्र". पृथ्वी से, मिल्की वे एक बैंड के रूप में दिखता है (Milky Way Latin word).
गैलीलियो गैलीली (Galileo Galilei) ने पहली बार 1610 में अपने टेलीस्कोप के साथ अलग-अलग तारों में प्रकाश के बैंड को हल किया (Band of light). 1920 में खगोलविदों हार्लो शेपली और हेबर कर्टिस के बीच हुई हुए रिसर्च से एडविन हबल (Edwin Hubble) ने पाया कि मिल्की वे कई आकाशगंगाओं में से एक है.
आकाशगंगा का अनुमानित व्यास 100,000-200,000 प्रकाश-वर्ष है (Diameter of Milky Way). आकाशगंगा में कई उपग्रह आकाशगंगाएं (Galaxy) हैं. अनुमान है कि इसमें 100-400 अरब तारे और कम से कम इतने ही ग्रह हैं. सौर मंडल गेलेक्टिक सेंटर (Galactic Center) से लगभग 27,000 प्रकाश-वर्ष के दायरे में स्थित है.
पूरी तरह से आकाशगंगा लगभग 600 किमी प्रति सेकंड के वेग से आगे बढ़ रही है. मिल्की वे में सबसे पुराने तारे लगभग उतने ही पुराने हैं जितने कि स्वयं ब्रह्मांड (Milky Way Age) और संभवत: बिग बैंग के Dark Age के तुरंत बाद बना था (Big Bang).
एक हैरतअंगेज स्टडी सामने आई है, जिसमें दावा किया गया है कि अंतरिक्ष में जो तारे तेज गति से चल रहे हैं, उन्हें इंटेलिजेंट एलियन सभ्यता चला रही है. एलियन सभ्यता ने अपने ग्रह को तेज गति में चलने वाले यान में बदल दिया है. ताकि एक गैलेक्सी से दूसरी गैलेक्सी में जाने में किसी तरह की दिक्कत न हो. नए स्पेसक्राफ्ट न बनाने पड़े.
पहली बार हमारी आकाशगंगा यानी गैलेक्सी के बाहर कोई तारा खोजा गया है. जिसकी क्लोजअप तस्वीर भी सामने आई है. यह एक बड़ा मैग्लेनिक क्लाउड है, जो हमारी धरती से 1.60 लाख प्रकाश वर्ष दूर है. आप भी इस तस्वीर को देखिए. यह बेहद विशालकाय है. इसका आकार हमारे सूरज की रेडियस से 2000 गुना ज्यादा है.
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप ने अंतरिक्ष में तीन प्राचीन, विशालकाय और रहस्यमयी 'Red Monster' आकाशगंगाएं खोजी हैं. कायदे से इन्हें मौजूद नहीं होना चाहिए था. लेकिन ये ब्रह्मांड के बनने के 100 करोड़ साल बाद से अब तक मौजूद हैं. इनके अंदर से लाल रोशनी निकल रही है. ये हमारी आकाशगंगा जितनी बड़ी हैं.
दुनिया का सबसे बड़ा टेलिस्कोप बहुत जल्द तैयार होने वाला है. गुंबद बनकर तैयार है. प्रोटेक्टिव पैनल्स लग रहे हैं. इसके बाद टेलिस्कोप लगाया जाएगा. फिर जमीन से ही आकाशगंगा के दिल में झांक सकेंगे हमारे वैज्ञानिक. आइए जानते हैं कि ये टेलिस्कोप कहां है? क्यों बनाया जा रहा है? इससे किस तरह का फायदा होगा?
हमारी आकाशगंगा की रचना Shiv और Shakti ने की है. ये बात अब जर्मनी के वैज्ञानिक भी मान रहे हैं. हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की वे को बनाने वाले प्राचीनतम कणों को शिव और शक्ति का नाम दिया गया है. इन्हीं कणों ने मिलकर हमारी आकाशगंगा को बनाया है. यह खोज गाइया स्पेस टेलिस्कोप की मदद से की गई है.
आइंस्टीन रिंग की गुरुत्वाकर्षण शक्ति बहुत ज्यादा होती है. इसे ग्रैविटेशनली लेंस्ड ऑबजेक्ट कहते हैं. यह तब बनता है जब कोई ताकतवर आकाशगंगा या ब्लैक होल अपने चारों तरफ स्पेस टाइम को बांध लेती है. वहां से जो रोशनी निकलती है, वह चारों तरफ एक घेरे जैसी आकृति बना लेती है.
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप ने बच्चा तारों की तस्वीर ली है. ये अभी बन ही रहे हैं. इनके चारों तरफ कई रंगों की रोशनी का विस्फोट देखा गया है. इन तारों को नाम दिया गया है हरबिग-हारो 46/47 (Herbig-Haro 46/47). इसकी तस्वीर जब वैज्ञानिकों को मिली तो वो हैरान रह गए. क्योंकि यहां जुड़वां तारों का जन्म हो रहा है.
दो नए, दुर्लभ और बेहद विचित्र विशालकाय तारे मिले हैं. एक का नाम है गॉडजिला. दूसरे का मोथरा. ये धरती से इतनी ज्यादा दूर हैं कि वहां से यहां तक रोशनी आने में 1040 करोड़ साल लग जाते हैं. यह अत्यधिक दुर्लभ कायजू तारों की श्रेणी के तारे है. ये तारे बेहद बड़े और ज्यादा चमकदार होते हैं.
धरती के बेहद करीब एक सुपरनोवा मिला है. अगर आसमान साफ हो तो आप इसे देख सकते हैं. क्योंकि इसमें लगातार विस्फोट हो रहा है. यह दूर से चमकता हुआ दिख रहा है. यह सुपरनोवा एम101 गैलेक्सी के अंदर है. जिसे एसएन2023आईएक्सएफ नाम दिया गया है.
एलियन बहुत जल्द इंसानों से मिलने वाले हैं. ये दावा किया है यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एक साइंटिस्ट ने. वैज्ञानिक का अनुमान है कि साल 2029 तक एलियन इंसानों से संपर्क कर लेंगे. यानी सिर्फ छह साल में. अगर ऐसा हुआ तो इंसानों से एलियन क्या बात करेंगे? क्या वो हमला करेंगे? या फिर मित्रता?
कहते हैं कि ब्लैक होल में जो जाता है, निकल नहीं पाता. अगर हमारी धरती ब्लैक होल में गिर जाए. या ब्लैक होल उसे निगल ले, तब क्या होगा. क्या हम इंसान. या जानवर. या पेड़-पौधे. समंदर ये सब बचेंगे. क्या होगा पृथ्वी के हर हिस्से का. माउंट एवरेस्ट से लेकर समंदर तक सबकुछ सही रहेगा क्या?
पृथ्वी की तरफ एक बहुत बड़ा Black Hole मुंह खोल कर खड़ा है. काफी समय से वैज्ञानिक इसे आकाशगंगा समझ रहे थे. अब साइंटिस्ट इस बात से हैरान हैं कि इसकी दिशा हमारे ग्रह की तरफ क्यों है? क्योंकि इसने ये जल्दी ही किया है. अपना मुंह घुमाकर धरती की तरफ कर दिया है.
3C 297 एक बहुत ही ताकतवर गैलेक्सी है. इसमें से बहुत तेज रेडिएशन निकल रहा है. साथ ही इसके अंदर एक विशालकाय ब्लैक होल मौजूद है. जो अभी क्वासार (Quasar) के रूप में है. इसके रास्ते में और इसके आसपास जो भी चीजें मौजूद हैं, उसे खाता जा रहा है.
सुदूर अंतरिक्ष की गहराइयों में ऐसी आकाशगंगा मिली है, जो बिल्कुल अकेली है. पहले यह अपने दोस्तों और अन्य ग्रहों, आकाशगंगाओं से घिरी हुई थी. लेकिन एक दिन इसका ब्लैक होल जाग गया. उसने सबको अपने अंदर समा लिया. अब अंतरिक्ष के हिस्से में यह आकाशगंगा एकदम शांत और अकेली पड़ी है.
अंतरिक्ष में एक बेहद दुर्लभ आकाशगंगा मिली है. जिसके अंदर तीन विशालकाय ब्लैक होल्स हैं. दुर्लभ आकाशगंगा इसलिए क्योंकि इसमें तीन गैलेक्सी मिल रही हैं.
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के सबसे विशालकाय आकृतियों को खोज निकाला है. यह एक दुर्लभ आकाशगंगा है, जिसके अंदर तीन बेहद बड़े ब्लैक होल हैं. ये ब्लैक होल हमारे सूरज से करोड़ों गुना बड़े हैं. इनका वजन 1000 करोड़ सूर्य से ज्यादा है. जानिए क्या खोजा है वैज्ञानिकों ने...
एक विशालकाय धूमकेतु मिला है, जो दूसरे सौर मंडल से आया है. यह बेहद तेजी से हमारे सूरज की ओर जा रहा है. यानी ये सूरज से टकराकर सुसाइड करने की ओर बढ़ रहा है. वैज्ञानिकों ने इतना बड़ा धूमकेतु इससे पहले कभी नहीं देखा. इस धूमकेतु को नासा के गैलेक्सी इवोल्यूशन एक्सप्लोरर सैटेलाइट ने खोजा है.
अंतरिक्ष में एक ऐसी रहस्यमयी वस्तु मिली है, जो हमारे सूरज से 57 हजार करोड़ गुना ज्यादा चमकदार है. यह वस्तु हमारी पृथ्वी से करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर है. यहां से इतनी ज्यादा ऊर्जा निकल रही है, जो फिजिक्स के सारे नियमों को फेल कर दे रही है. आइए समझते हैं कि ये वस्तु क्या है? इतनी चमक आई है कैसे?
Milky Way के ऊपर कुछ बुलबुले नजर आते हैं, जो गैलेक्टिक प्लेन के ऊपर और नीचे फैले हुए हैं. ये गामा-रे की रोशनी में चमकते हैं. शोधकर्ताओं ने अब यह पता लगा लिया है कि ये बुलबुले क्यों और कैसे बने.
वैज्ञानिकों को एक शोध के ज़रिए पता चला है कि हमारी मिल्की वे के पास ही की एक गैलेक्सी दूसरे ग्रहों और तारों को खाकर अपना आकार बढ़ा रही है. अलग-अलग युगों में यह गैलेक्सी ऐसा दो बार कर चुकी है. शोधकर्ताओं को इस शोध के नतीजों में गैल्गेटिक कैनाबिलिज़्म (Galactic cannibalism) के स्पष्ट सबूत मिले हैं.
खगोलविदों ने दो प्रचीन व्हाइट ड्वार्फ को खोजा है. इनमें से एक 1020 करोड़ साल पहले बना था और दूसरा 900 करोड़ साल पहले. दोनों तारों का रंग अलग अलग है. एक लाल और एक नीला. वैज्ञानिकों का कहना है कि नीले रंग का तारा, पृथ्वी जैसे किसी ग्रह के अवशेषों को खा रहा है.