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मॉब लिचिंग

मॉब लिचिंग

मॉब लिचिंग

मॉब लिंचिंग

मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) एक समूह द्वारा की गई गैर-न्यायिक हत्या होता है. यह अक्सर एक कथित उल्लंघनकर्ता को दंडित करने, एक दोषी या अपराधी को दंडित करने, या लोगों को डराने के लिए भीड़ द्वारा सार्वजनिक दंड होता है. यह समूह सामाजिक नियंत्रण का एक चरम रूप भी हो सकता है और इसे अक्सर अधिकतम डराने-धमकाने के लिए दोषी को सरेआम सजा दी जाती है, जो गैर-कानूनी है. लिंचिंग और इसी तरह की भीड़ की हिंसा के उदाहरण हर समाज में पाए जा सकते हैं.


भारत में लिचिंग के कई कारण हो सकते हैं. कई बार लिंचिंग जातीय समुदायों के बीच आंतरिक तनाव के हो सकती है. सोगों की भीड़ यानी मॉब कभी-कभी ऐसे व्यक्तियों की पीट-पीट कर हत्या कर देते हैं जिन पर अपराध करने का आरोप लगाया जाता है या उन पर संदेह किया जाता है (Mob Lynching in India). 

5 मार्च 2015 में नागालैंड के दीमापुर मॉब लिंचिंग में भीड़ ने एक जेल में घुसकर मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे एक आरोपी बलात्कारी को पीट-पीट कर मार डाला था. मई 2017 में झारखंड राज्य में सात लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी, जिसे व्हाट्सएप लिंचिंग के रूप में जाना जाता है. यह घटना बच्चे के अपहरण और अंग काटाने से संबंधित व्हाट्सएप के माध्यम से फैलाई गई खबर का नतीजा था. 
जुलाई 2019 में, बिहार के छपरा जिले में मवेशियों की चोरी के एक मामले में भीड़ ने तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. इसके अलावा 2019 में ही, झारखंड में ग्रामीणों ने जादू टोना के संदेह में चार लोगों की हत्या कर दी (Mob Lynching Cases in India).

समाजशास्त्रियों और सामाजिक वैज्ञानिकों ने जाति व्यवस्था के लिए नस्लीय भेदभाव को जिम्मेदार ठहराया और इस तरह की घटनाओं को अंतर-नस्लीय जातीय-सांस्कृतिक संघर्षों के लिए भी जिम्मेदार ठहराया गया है (Mob Lynching).

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