पारले
Parle Products एक भारतीय बहुराष्ट्रीय खाद्य कंपनी है (Parle, Indian Food Industries). यह बिस्किट ब्रांड पारले-जी के लिए जाना जाता है (Parle Biscuit). 2019 में, वैश्विक बिस्किट बाजार में इसकी 70% हिस्सेदारी थी (Parle Shares). नीलसन के अनुसार 2020 तक पारले-जी दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट ब्रांड है (Parle G Biscuit, Best Selling in the World).
Parle Products कंपनी की स्थापना 1929 में भारत में विले पार्ले (Vile Parle) ने किया था (Foundation of Parle). वे बॉम्बे के चौहान परिवार से ताल्लुक रखते हैं. पारले ने 1939 में बिस्कुट का निर्माण शुरू किया. 1947 में, जब भारत स्वतंत्र हुआ, कंपनी ने ब्रिटिश बिस्कुट के भारतीय विकल्प के रूप में अपने ग्लूकोज बिस्कुट को प्रदर्शित करते हुए एक विज्ञापन अभियान शुरू किया. पारले-जी बिस्कुट और गोल्ड स्पॉट, थम्स अप और फ्रूटी जैसे ठंडे पेय जैसे उत्पादों की सफलता के बाद पारले ब्रांड भारत में प्रसिद्ध हो गया. इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है (Headquarter of Parle).
मूल पारले कंपनी को तीन अलग-अलग कंपनियों में विभाजित किया गया था (Three Different Companies of Parle), जो चौहान परिवार के विभिन्न गुटों के स्वामित्व में थी, जिसमें से अधिकांश पारले एग्रो उत्पादों के स्वामित्व में है. पारले प्रोडक्ट्स (Parle Products) (1950), विजय, शरद और राज चौहान के नेतृत्व में - पारले-जी, 20-20, मैगिक्स, मिल्कशक्ति, मेलोडी, मैंगो बाइट, पॉपपिन, लंदनडेरी, किसमी टॉफी बार, मोनाको और क्रैकजैक जैसे ब्रांड शामिल है.
पारले एग्रो (Parle Agro), प्रकाश चौहान और उनकी बेटियों शौना, अलीशा और नादिया के नेतृत्व में- फ्रूटी और एप्पी जैसे ब्रांड शामिल हैं. तीनों कंपनियां पारिवारिक ट्रेडमार्क नाम "पारले" का ही उपयोग करती हैं.
मुंबई में मूल कारखाने के अलावा, पारले में कानपुर (उत्तर प्रदेश), नीमराना (राजस्थान), बेंगलुरु (कर्नाटक), हैदराबाद (तेलंगाना), कच्छ (गुजरात), खोपोली (महाराष्ट्र), इंदौर (मध्य प्रदेश), पंतनगर (उत्तराखंड), सितारगंज (उत्तराखंड), बहादुरगढ़ (हरियाणा), और मुजफ्फरपुर (बिहार) में विनिर्माण कंपनी हैं (Factories of Parle in India).
Parle-G Profit Twofold In FY24: आजादी से पहले शुरू हुए और सेकेंड वर्ल्ड वार के दौरान सबसे पॉपुलर रहे पारले-जी बिस्कुट की डिमांड अभी भी बरकरार है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि FY24 में इसका मुनाफा बढ़कर डबल हो गया है.
Parle-G Inside Story: पारले-जी बिस्किट का इतिहास आजादी से पहले का है और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तो इसकी सेल चरम पर थी. वहीं आज भी इसका बिजनेस लगातार आगे बढ़ रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इसके नाम में 'G' का क्या मतलब है.
पारले की ओर से कंपनी के ऑफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट पर Parle-G बिस्किट के पैकेट के रैपर पर पारले गर्ल की जगह एक इंस्टाग्राम इन्फ्लूएंसर की तस्वीर लगाकर एक पोस्ट शेयर किया है. इसमें पारले-जी का नाम भी बदला गया है. ये पोस्ट तेजी से वायरल हो रहा है.
Parle-G Success Story : पारले ने स्वदेशी आंदोलन के दौरान साल 1929 में कैंडी का प्रोडक्शन शुरू किया और इसके एक दशक के बाद पहली बार 1938 में पारले-ग्लूको (Parle-Gloco) नाम से बिस्किट का उत्पादन शुरू किया.
Parle-G बिस्किट का स्वाद आज भी लोगों की जुबां पर बरकार है. भारत में ये सिर्फ एक बिस्किट का ब्रांड भर नहीं है, बल्कि इसके साथ लोगों को भावनाएं भी जुड़ी हैं. जब भी पारले-जी का जिक्र होता है, हम अपने बचपन में लौट जाते हैं. समय के साथ पारले-जी बिस्किट में कई बदलाव हुए, लेकिन इसका स्वाद नहीं बदला.
Parle की शुरुआत साल 1929 में हुई थी और कंपनी ने पहली बार 1938 में पारले-ग्लूको (Parle-Gloco) नाम से बिस्किट का उत्पादन शुरू किया था. आजादी से पहले पारले-जी (Parle-G) का नाम ग्लूको बिस्किट (Gluco Biscuit) ही हुआ करता था. लेकिन, 1980 के बाद इसे नया नाम दिया गया.
Parle G Biscuit : 25 साल तक पारले-जी बिस्किट के छोटे पैकेट की कीमत चार रुपये ही रही. कंपनी ने इस कीमत को कैसे बरकरार रखा है, इसका पूरा गणित स्विगी के डिजाइन डायरेक्टर सप्तर्षि प्रकाश ने समझाया है. प्रकाश ने बताया कि पहले पारले-जी का छोटा पैकेट 100 ग्राम का आता था. कुछ साल बाद इसे घटाकर 92.5 ग्राम कर दिया गया.