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मंदी

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आर्थिक गतिविधि में सामान्य गिरावट होने पर मंदी की स्थिति बनती है. आम तौर पर मंदी तब होती है जब खर्च में व्यापक गिरावट होती है. यह विभिन्न घटनाओं से शुरू हो सकता है, जैसे कि एक वित्तीय संकट, एक बाहरी व्यापार में गिरावट, एक प्रतिकूल आपूर्ति न हो पाना या एक बड़े पैमाने पर मानव जनित या प्राकृतिक आपदा जैसे एक महामारी (Definition of Recession). 

मंदी को "बाजार में फैली आर्थिक गतिविधि में एक महत्वपूर्ण गिरावट (Financial Crisis), कुछ महीनों से अधिक समय तक चलने वाली, वास्तविक जीडीपी (GDP), वास्तविक आय, रोजगार, औद्योगिक उत्पादन और थोक-खुदरा बिक्री में सामान्य रूप से दिखाई देने वाली गिरावट" के रूप में परिभाषित किया गया है (External Trade Shock). 

सरकारें आमतौर पर विस्तारवादी व्यापक आर्थिक नीतियों को अपनाकर मंदी का जवाब देती हैं, जैसे कि धन की आपूर्ति में वृद्धि (Increasing Money Supply) या सरकारी खर्च में वृद्धि (Increasing Government Spending) और कराधान में कमी (Decreasing Taxation).

एक मंदी में कई तरह की होती हैं जो एक साथ हो सकती हैं. इसमें आर्थिक गतिविधि (GDP) के घटक उपायों जैसे खपत, निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध निर्यात गतिविधि में गिरावट शामिल है. साथ ही, शेयर बाजार में गिरावट से भी मंदी की आशंका जताई गई है (Stock Market Declines). 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, "वैश्विक मंदी आठ से 10 वर्षों के बीच के चक्र में होती है." वैश्विक मंदी को परिभाषित करते समय आईएमएफ कई कारकों को ध्यान में रखता है (Global Recessions in between 8 and 10 years). अप्रैल 2009 तक, आईएमएफ ने कई बार प्रेस को सूचित किया, कि उनके विचार में वैश्विक वार्षिक वास्तविक जीडीपी वृद्धि 3.0 प्रतिशत या उससे कम थी जो " वैश्विक मंदी के बराबर" है (Recession in 2009). इस तरह, 1970 से छह अवधियां- 1974-1975, 1980-1983, 1990-1993, 1998, 2001-2002, और 2008-2009. 2020 में, COVID-19  वैश्विक मंदी का कारण बना (Recession due to COVID 19).

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