सरस्वती नदी (Saraswati River) भारतीय पौराणिक कथाओं और इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण नदी मानी गई है. यह वेदों में एक पवित्र नदी के रूप में वर्णित है और ऋग्वेद में इसका कई बार उल्लेख मिलता है. सरस्वती नदी को ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती से भी जोड़ा गया है. सरस्वती नदी का उल्लेख महाभारत और पुराणों में भी मिलता है. यह नदी ध्यान, ध्यानस्थल और विद्या के स्थानों के रूप में महत्वपूर्ण मानी गई है.
ऋग्वेद में सरस्वती को 'नदियों की माता' कहा गया है. इसे एक शक्तिशाली और जीवनदायिनी नदी के रूप में वर्णित किया गया है. सरस्वती नदी के किनारे वैदिक सभ्यता फली-फूली थी. सरस्वती को त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती) में से एक माना जाता है.
कहा जाता है कि सरस्वती नदी पृथ्वी पर बहती थी, लेकिन बाद में यह लुप्त हो गई और भूमिगत हो गई.
वैज्ञानिक और पुरातात्त्विक अनुसंधानों के अनुसार, सरस्वती नदी हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों से होकर बहती थी.
माना जाता है कि यह नदी सिंधु और घग्गर-हकरा नदी प्रणाली से जुड़ी थी. कुछ अध्ययनों में सरस्वती नदी के सूखने का कारण जलवायु परिवर्तन और टेक्टोनिक गतिविधियों को बताया गया है.
आज के समय में, भूवैज्ञानिक और सैटेलाइट इमेजरी की मदद से सरस्वती नदी के प्राचीन प्रवाह मार्ग की पहचान की जा रही है. हरियाणा और राजस्थान में इसके निशान पाए गए हैं. कई विद्वानों का मानना है कि सरस्वती नदी ही घग्गर-हकरा नदी है, जो अब लगभग विलुप्त हो चुकी है.
बसंत पंचमी 2 फरवरी को मनाई जाएगी, यह मां सरस्वती की पूजा का पावन दिन है। इस शुभ अवसर पर कुछ गलतियां करने से बचना जरूरी है, वरना देवी की कृपा नहीं मिलेगी। जानें इस दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं।