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यूपीएससी लैटरल एंट्री

यूपीएससी लैटरल एंट्री

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यूपीएससी लैटरल एंट्री (UPSC Lateral Entry) नौकरशाही में एक ऐसी प्रथा है जिसमें मध्य और वरिष्ठ स्तर के पदों को भरने के लिए सरकारी सेवा या प्राइवेट जॉब कर रहे लोग भी पोस्ट योग्यता के हिसाब से इसके लिए आवेदन कर सकते हैं. PSU, स्वायत्त निकायों (Autonomous Bodies), Statutory Organisations, यूनिवर्सिटी, मान्यता प्राप्त रिसर्च इंस्टीट्यूट, प्राइवेट कंपनी, इंटरनेशनल/MNC में कार्यरत लोग भी इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं.

नौकरशाही में लैटरल एंट्री औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान शुरू किया गया था, जिसमें 2018 में रिक्तियों के पहले सेट की घोषणा की गई थी. उम्मीदवारों को आम तौर पर तीन से पांच साल की अवधि के अनुबंध पर काम पर रखा जाता है, जिसमें प्रदर्शन के आधार पर आगे एक्सटेंशन होता है.

इसका उद्देश्य बाहरी विशेषज्ञता का उपयोग करके जटिल शासन और नीति कार्यान्वयन चुनौतियों का समाधान करना है. लैटरल एंट्री की अवधारणा का ऐतिहासिक उदाहरण है. कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के दौरान 2005 में स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) द्वारा इसकी पहली बार सिफारिश की गई थी. वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले ARC ने पारंपरिक सिविल सेवाओं में उपलब्ध नहीं होने वाले विशेष ज्ञान की आवश्यकता वाली भूमिकाओं को भरने के लिए लैटरल एंट्री की वकालत की. इन सिफारिशों में नीति कार्यान्वयन और शासन को बेहतर बनाने के लिए निजी क्षेत्र, शिक्षाविदों और सार्वजनिक उपक्रमों से पेशेवरों की भर्ती पर जोर दिया गया था.

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