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उत्पन्ना एकादशी

उत्पन्ना एकादशी

उत्पन्ना एकादशी

उत्पन्ना एकादशी

सालभर में कुल 24 एकादशी के व्रत होते हैं. सभी एकादशियों के नाम और महत्व भी अलग अलग हैं. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बड़ा महत्व है. आमतौर पर जब किसी को एकादशी व्रत रखना होता है, तो वो किसी भी शुक्ल पक्ष की एकादशी से इस व्रत की शुरुआत कर देते हैं. लेकिन माना जाता है कि एकादशी व्रत की शुरुआत उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi) से करनी चाहिए. इसे ही पहली एकादशी माना जाता है. यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ता है.

व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का होता है. एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन कि चंचलता समाप्त होती है. धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्यों के पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं. उत्पन्ना एकादशी व्रत के प्रभाव से संतान सुख, आरोग्य और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है (Utpanna Ekadashi importance).

उत्पन्ना एकादशी का व्रत आरोग्य, संतान प्राप्ति और मोक्ष के लिए किया जाने वाला व्रत है. ये व्रत रखने से हर प्रकार की मानसिक समस्या को दूर किया जा सकता है. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प लिया जाता है. नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद भगवान की पूजा करते है और कथा सुनते हैं. द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को को भोजन कराएं. दान-दक्षिणा देकर अपने व्रत का समापन कर पारण किया जाता है (Utpanna Ekadashi Rituals). 

उत्पन्ना एकादशी का व्रत दो तरह से रखा जाता है. ये व्रत निर्जला और फलाहारी या सिर्फ जल ग्रहण कर ही रखा जाता है. इस व्रत में दशमी को रात में भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी को सुबह श्री कृष्ण की पूजा की जाती है. इस व्रत में सिर्फ फलों का ही भोग लगाया जाता है. इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाता है (Utpanna Ekadashi Vrat and Puja). 

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