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वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) को वट पूर्णिमा (Vat Purnima) भी कहा जाता है. यह एक हिंदू उत्सव है जो उत्तर भारत और पश्चिमी भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं मनाती हैं. एक विवाहित महिला बरगद के पेड़ के चारों ओर एक औपचारिक धागा बांधकर अपने पति के लिए अपने प्यार को चिह्नित करती है (Worship of Banyan Tree). यह उत्सव महाकाव्य महाभारत में वर्णित सावित्री और सत्यवान की कथा पर आधारित है.

किवदंतियां महाभारत के युग की एक कहानी से मिलती हैं. जो इस प्रकार है- निःसंतान राजा अश्वपति और उनकी पत्नी मालवी एक संतान की कामना करते हैं. उन्हे एक पुत्री होती है जिसका नाम सावित्री रखा जाता है. बेटी के बड़े हो जाने पर उसकी शादी की चिंता राजा अश्वपति को सताने लगती है ऐसे में सावित्री को कहा जाता है कि वो दुल्हे के तलाश में भ्रमण करें. तब सावित्री, द्युमत्सेन नाम के एक अंधे राजा के पुत्र सत्यवान को पसंद करती हैं. ऋषि नारद बताते हैं कि सत्यवान की मृत्यु शादी से ठीक एक साल बाद होनी तय है, लेकिन सावित्री नहीं मानती और सत्यवान से शादी कर लेती हैं. एक साल बाद जंगल में लकड़ी काटते समय सत्यवान की मृत्यु हो जाती है. सत्यवान को वट वृक्ष के छाए में लिटाकर सावित्री यमराज के पीछे पीछे चल देती हैं और अपनी निष्ठा और प्रतिज्ञा के साथ वो यमराज से प्रार्थना करती है कि वो उनके पति को जीवित कर दें. यमराज सावित्री की निष्ठा को देख प्रसन्न होते हैं और सत्यवान को जीवित कर देते हैं (Story of Vat Savitri puja).

इस तरह भारतीय मान्यताओं को देखते हुए अपने पति के लंबे आयु के लिए महिलाएं वट सावित्री व्रत रखती हैं. आमतौर पर जेष्ठ यानी मई-जून के महीने में यह व्रत रखी जाती है (Vat Savitri puja in May or June). इस पूजा में महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों ओर धागा बांधती हैं और अपने पति की भलाई के लिए प्रार्थना करते हुए पूरे दिन व्रत रखती हैं (Vat Savitri Vrat for Husbands Long Life). 

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