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महिला आरक्षण बिल

महिला आरक्षण बिल

महिला आरक्षण बिल

संसद के विशेष सत्र के पहले दिन यानी 18 सितंबर 2023 को केंद्रीय कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी (Women Reservation Bill). सबसे पहले सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश किया था. इसके बाद से लगभग हर सरकार ने इस विधेयक को पारित कराने की कोशिश की. मौजूदा समय में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है, जो कुल सांसदों का सिर्फ 14 फीसदी है. राज्यसभा में महिला सांसदों की संख्या महज 32 है. लेकिन कई राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है.  

यूपीए सरकार 2010 में राज्यसभा में इसे जरूर पारित कराने में सफल रही लेकिन यह विधेयक लोकसभा में लटक गया. महिला आरक्षण विधेयक 27 सालों लटका हुआ था.

12 सितंबर 1996 को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में ससंद में महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया था (Women Reservation Bill HD Deve Gowda). उस समय यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी, जो 13 पार्टियों का गठबंधन था. लेकिन सरकार में शामिल जनता दल और अन्य पार्टियों के नेता महिला आरक्षण के पक्ष मे नहीं थे. जिसके कारण इस विधेयक को सीपीआई की गीता मुखर्जी की अगुवाई वाली संयुक्त समिति के समक्ष भेजा गया. इस 31 सदस्यीय संसदीय समिति में ममता बनर्जी, मीरा कुमार, सुमित्रा महाजन, नीतीश कुमार, शरद पवार, विजय भास्कर रेड्डी, सुषमा स्वराज, उमा भारती, गिरिजा व्यास, रामगोपाल योदव, सुशील कुमार शिंदे और हन्नाह मोल्लाह शामिल थे. 

कई दूसरे देशों में भी कई राजनीतिक दलों ने कानून में कोटा प्रावधान निर्धारित किया है. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में महिलाओं के लिए 60 सीटें आरक्षित हैं. बांग्लादेश की संसद में महिलाओं के लिए 50 सीटें आरक्षित हैं. नेपाल की संसद में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हैं. तालिबान के शासन से पहले अफगानिस्तान की संसद में महिलाओं के लिए 27 फीसदी सीटें आरक्षित थीं. यूएई की फेडरल नेशनल  काउंसिल (एफएनसी) में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित हैं. कई अफ्रीकी, यूरोपीय, दक्षिण अमेरिकी देशों में भी राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान है (Women Reservation Bill in Other Countries). 

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