12 फरवरी की रात पूरा उत्तर भारत ताजिकिस्तान में आए भूकंप की वजह से कांप गया. क्या आपको पता है कि पिछले साल भारत की धरती कितनी बार हिली थी. साल 2020 में कई बार देश के लोगों ने भूकंप के छोटे-बड़े झटके महसूस किए. कई बार घर, फ्लैट और दफ्तरों से बाहर निकल कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचे. पिछली साल 1 जनवरी से लेकर 31 दिसंबर तक भारत की धरती 965 बार हिली. यानी हर दिन करीब तीन बार. देश के विज्ञान, तकनीकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 5 फरवरी को लोकसभा में इस सवाल का जवाब दिया. आइए जानते हैं कि देश कितनी बार थर्राया. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
पिछले साल यानी 1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक भारत में कुल मिलाकर 965 बार भूकंप आए हैं. भूकंप के ये आंकड़े नेशनल सेंटर ऑफ सीस्मोलॉजी (NCS) की तरफ से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को दिए गए हैं. इन 965 भूकंप के झटकों में से 13 झटके दिल्ली-NCR में महसूस किए गए. ये सभी 965 झटके 3 तीव्रता या उससे ऊपर के थे. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
वॉल्कैनो डिस्कवरी डॉट कॉम के मुताबिक, पिछले साल 6.0 तीव्रता के दो ही झटके महसूस हुए. जबकि 25 बार 5.0 से 6.0 तीव्रता के बीच के भूकंप आए थे. 4 से 5 तीव्रता के बीच 355 भूकंप आए थे. 3 से 4 तीव्रता के 388 भूकंप और 2 से 3 तीव्रता के 108 भूकंप देश में महसूस किए गए. भारत में जो सबसे तेज भूकंप महसूस किया गया था वो 22 जुलाई को चीन के शिजांग इलाके में आया था. इसकी तीव्रता 6.4 थी. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
दुनियाभर के भूगर्भशास्त्रियों और भूकंप के एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस समय धरती की टेक्टोनिक प्लेटें खिसक रही हैं, जिसकी वजह से इतने भूकंप आ रहे हैं. देश के बड़े इलाकों में ये महसूस किए गए. लोग डरे भी. कुछ जगहों पर हल्का-फुल्का नुकसान भी देखने को मिला. लेकिन अच्छी बात ये रही कि किसी के मरने या घायल होने की खबर नहीं आई. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
कई बार दो टेक्टोनिक प्लेटों की बीच में बनी गैस या प्रेशर जब रिलीज होता है तब भी हमें भूकंप के झटके महसूस होते हैं. ये हालात गर्मियों में ज्यादा देखने को मिलते हैं. लोग घरों और दफ्तरों से बाहर निकल आए. कुछ जगहों पर लाइट चली गई. कुछ कमजोर इमारतों और ढांचों को मामूली नुकसान पहुंचा. हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट हिमालयन टेक्टोनिक प्लेट की तरफ खिसक रही है. इसकी वजह से हमें गर्मियों में ज्यादा झटके महसूस हुए. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि देश को चार भूकंप जोन में बांटा गया है. जोन-5 यानी सबसे ज्यादा भूकंपीय गतिविधियों वाला स्थान. इसमें कश्मीर घाटी का हिस्सा, हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात का कच्छ, उत्तरी बिहार, सभी उत्तर-पूर्वी राज्य और अंडमान-निकोबार आते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
जोन-4 में लद्दाख, जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्से, दिल्ली, सिक्किम, यूपी का उत्तरी हिस्सा, बिहार और पश्चिम बंगाल का कुछ हिस्सा, गुजरात और महाराष्ट्र का पश्चिमी हिस्सा और राजस्थान का सीमाई इलाका. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
जोन-3 में केरल, लक्षद्वीप, उत्तर प्रदेश का निचला इलाका, गुजरात-पंजाब के कुछ हिस्से, पश्चिम बंगाल का हिस्सा, मध्यप्रदेश, उत्तरी झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
जोन-2 यानी सबसे कम भूकंपीय गतिविधि वाला जोन. इसमें कई राज्यों के कुछ छोटे-छोटे हिस्से आते हैं. डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि नेशनल सीस्मोलॉजिकल नेटवर्क साल 2021-22 में 35 फील्ड स्टेशन लगाने जा रहा है. इसके साथ ही देश में कुल 150 भूकंप स्टेशन हो जाएंगे. जो धरती की हलचलों के बारे में सूचना देंगे. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
इन भूकंपों की स्टडी के लिए नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) इसरो की मदद से सैटेलाइट इमेजिंग की मदद ले रही है. इसके अलावा वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून और आईआईटी कानपुर भी इस काम में NCS की मदद कर रहा है. ये तीनों संस्थान फिलहाल दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों की स्टडी कर रहे हैं. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)