नशे में धुत लोगों को तो आपने खूब देखा होगा लेकिन क्या कभी मछलियों को नशे में देखा है? आपका जवाब होगा भला ऐसा कैसे हो सकता है लेकिन यह सच्चाई है.
जी हां मध्य प्रदेश के बालाघाट में आदिवासी मछलियों को नशा देकर उसे आसानी से पकड़ लेते हैं. दरअसल कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से बैगा समुदाय के आदिवासियों के रोजी-रोटी पर संकट आ गया है. उनके लिए दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो गया.
इसके बाद वो अपने आसपास पाई जाने वाली मछलियों से अपने परिवार का पेट भरने लगे. ज्यादा संख्या में मछलियों को पकड़ने के लिए उन्होंने एक पुरानी तरकीब खोजी और एक फल के जरिए मछलियों को नशा देकर बेहोश होने पर उन्हें आसानी से पकड़ने लगे.
जिस फल से मछलियों को नशा दिया जाता है उसे टोंडरी कहते हैं जो जंगलों में आसानी से मिल जाता है. आदिवासी टोंडरी को कूट कर उसे अपने आसपास के नदी नालों और गड्ढों में मिला देते हैं. मछलियों तक यह जैसे ही पहुंचता है वो बेहोश हो जाती हैं जिसके बाद आदिवासी आसानी से उन्हें पकड़ा कर अपना भोजना बना लेते हैं.
प्रकृति के बेहद करीब रहने वाले बैगा जनजाति के लोगों का रहन-सहन आज भी प्राचीन तौर-तरीकों पर ही निर्भर है. ये लोग प्राचीन परंपरा के तहत ही मछलियों को नशा देकर अपने भोजन के रूप में उसका इस्तेमाल करते हैं.