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'दिहाड़ी चाहिए तो देह दो' चित्रकूट में खनन ठेकेदारों ने बसाया 'नरकलोक'

'दिहाड़ी चाहिए तो देह दो' चित्रकूट में खनन ठेकेदारों ने बसाया 'नरकलोक'
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ये नरकलोक है दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर बुंदेलखंड के चित्रकूट में, जहां गरीबों की नाबालिग बेटियां खदानों में काम करने के लिए मजबूर हैं, लेकिन ठेकेदार और बिचौलिये उन्हें काम की मजदूरी नहीं देते. मजदूरी पाने के लिए इन बेटियों को करना पड़ता है अपने जिस्म का सौदा.
'दिहाड़ी चाहिए तो देह दो' चित्रकूट में खनन ठेकेदारों ने बसाया 'नरकलोक'
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कोरोना संकट के दौर में चित्रकूट की खदानों में नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया है. आज तक की खास रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि खदानों में नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण किया जाता है.
'दिहाड़ी चाहिए तो देह दो' चित्रकूट में खनन ठेकेदारों ने बसाया 'नरकलोक'
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यहां इन बच्चियों की उम्र तो गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की है, कॉपी-कलम लेकर स्कूल जाने की उम्र है, लेकिन गरीबी और बेबसी ने इनके बचपन में अंगारे भर दिए हैं. परिवार को पालने का जिम्मा इनके कंधों पर आ चुका है. 12-14 साल की बेटियां खदानों में काम करने जाती हैं, जहां दो सौ से तीन सौ रुपये के लिए उनके जिस्म की बोली लगती है.
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कर्वी की रहने वाली सौम्या (बदला हुआ नाम) कहती है, 'जाते हैं और काम पता करते हैं तो वो बोलते हैं कि अपना शरीर दो तभी काम पर लगाएंगे, हम मजबूरी में ऐसा करते हैं, फिर भी पैसे नहीं मिलते. मना करते हैं तो बोलते हैं कि काम पर नहीं लगाएंगे. मजबूरन हमें उनकी बात माननी पड़ती है.'
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इस गांव की ये मासूम बेटी भी पहाड़ की खदानों में पत्थर उठाने जाती है. जिस उम्र में इसके हाथों में कॉपी-कलम होनी चाहिए थी, उन हाथों से इसे पत्थर उठाने पड़ते हैं. परिवार को पालने की जिम्मेदारी इसी मासूम के कंधे पर है. हाड़तोड़ मेहनत करने के बावजूद इस मासूम को अपने मेहनताने के लिए अपने तन का सौदा करना पड़ता है. कुछ बोलती है तो फिर पहाड़ से फेंक देने की धमकी मिलती है.
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सौम्या (बदला हुआ नाम, निवासी डफई गांव) कहती है, 'नाम नहीं बताएंगे, नाम कह देंगे मर जाएंगे. हमको इसलिए नाम नहीं बताता. धमकी भी देते हैं कि काम करना है तो करो, जो इस तरह का काम करोगे तभी लगाएंगे नहीं तो चली जाओ. फिर हम करते हैं….(क्या तीन चार आदमी रहते हैं ?) हां, ऐसा तो होता है पैसे का लालच करा देते हैं ऐसा तो होता है...अगर नहीं जाएंगे तो कहते हैं कि हम तुमको पहाड़ से फेंक देंगे तो हमें जाना पड़ता है.'
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सौम्या की मां (घर के भीतर से) कहती हैं, 'बोलते हैं कि काम में लगाएंगे जब अपना शरीर दोगे. मजबूरी है पेट तो चलाना है तो कहती है चलो भाई हम काम करेंगे. 300-400 दिहाड़ी है. कभी 200 कभी 150 देते हैं. घर चलाना है परिवार भूखे ना सोए. पापा का इलाज भी कराना है.'सौम्या के पिता कहते हैं कि अब क्या बताएं गरीबी जैसे हम लोग झेल रहे हैं. छोटे बच्चे हैं कमा के लाते हैं. किसी दिन खाए किसी दिन ऐसे ही सो गए.


चित्रकूट की पहाड़ियों पर करीब 50 क्रेशर चलते हैं. भुखमरी और बेरोजगारी की मार झेल रहे यहां के कोल समाज के लिए यही रोजी रोटी का सहारा है. इनकी गरीबी का फायदा उठाकर बिचौलिये और ठेकेदार बच्चियों का शोषण करते हैं. लोगों की क्या मजाल जो इनके खिलाफ आवाज भी उठा सके.

कई दिनों की पड़ताल आजतक की टीम को गोंडा गांव लेकर आई, महिलाऐं इतनी डरी हुई थी कि वो नहीं चाहती थी कि कोई इनको हमसे बात करता देखे. हैवानियत के इस घिनौने खेल पर आतंक का साया है जिसकी आड़ में न जाने कितनी मां बेटियों की अस्मिता तार-तार हो रही है.

यहां के नरकलोक के बारे में हमारी संवाददाता मौसमी सिंह ने तमाम आला अधिकारियों से बातचीत की, लेकिन उन्हें तो जैसे ऐसी घटनाओं का पता ही नहीं.
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