सौम्या की मां (घर के भीतर से) कहती हैं, 'बोलते हैं कि काम में लगाएंगे जब अपना शरीर दोगे. मजबूरी है पेट तो चलाना है तो कहती है चलो भाई हम काम करेंगे. 300-400 दिहाड़ी है. कभी 200 कभी 150 देते हैं. घर चलाना है परिवार भूखे ना सोए. पापा का इलाज भी कराना है.'सौम्या के पिता कहते हैं कि अब क्या बताएं गरीबी जैसे हम लोग झेल रहे हैं. छोटे बच्चे हैं कमा के लाते हैं. किसी दिन खाए किसी दिन ऐसे ही सो गए.
चित्रकूट की पहाड़ियों पर करीब 50 क्रेशर चलते हैं. भुखमरी और बेरोजगारी की मार झेल रहे यहां के कोल समाज के लिए यही रोजी रोटी का सहारा है. इनकी गरीबी का फायदा उठाकर बिचौलिये और ठेकेदार बच्चियों का शोषण करते हैं. लोगों की क्या मजाल जो इनके खिलाफ आवाज भी उठा सके.
कई दिनों की पड़ताल आजतक की टीम को गोंडा गांव लेकर आई, महिलाऐं इतनी डरी हुई थी कि वो नहीं चाहती थी कि कोई इनको हमसे बात करता देखे. हैवानियत के इस घिनौने खेल पर आतंक का साया है जिसकी आड़ में न जाने कितनी मां बेटियों की अस्मिता तार-तार हो रही है.
यहां के नरकलोक के बारे में हमारी संवाददाता मौसमी सिंह ने तमाम आला अधिकारियों से बातचीत की, लेकिन उन्हें तो जैसे ऐसी घटनाओं का पता ही नहीं.