कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन ने सरकारों और वैज्ञानिकों को चिंतित कर दिया है. कई वैज्ञानिक और मेडिकल इंस्टीट्यूट इस बात की जांच कर रहे हैं कि वायरस कैसे और क्यों अधिक संक्रामक बन गया है. सभी विषाणुओं की तरह, SARS-CoV-2 भी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए लगातार खुद को बदल रहा है. अभी तक की रिसर्च में सामने आया है कि इन वायरस की जो जेनेटिक कोडिंग की गई है उसमें कुछ कमी रह गई है.
जेनेटिक कोडिंग में ये कमी ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में हाल ही में उभरे कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन में पाया गया है जिससे इन्हें और संक्रामक बनने में मदद मिली है.
बर्न यूनिवर्सिटी के महामारी वैज्ञानिक एम्मा होडक्रॉफ्ट ने कहा, "जब हम संक्रमण के अधिक केस देखते हैं तो हम इस परिस्थिति में आने के लिए वायरस के अवसरों को अधिकतम कर रहे होते हैं. उन्होंने कहा कि जितना ज्यादा केस उतना ही संकमण फैलाने का इस वायरस को मौका मिलता है. ये परिस्थिति उन्हें खुद में बदलाव कर संक्रमण की रफ्तार को बढ़ाने का अवसर देता है. यदि हम केस की संख्या को कम रखते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से वायरस को सीमित क्षेत्र में प्रतिबंधित कर सकते हैं.''
लंदन के इंपीरियल कॉलेज के एक वायरोलॉजिस्ट वेंडी बार्कले ने कहा कि कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन (उत्परिवर्तन) कई कारकों का परिणाम था. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे आप पासा फेंकते हैं और हर बार अलग नंबर आता है लेकिन पासा एक ही होता है ठीक वैसे ही "इस वायरस के अलग-अलग रूप हैं लेकिन संयोजन एक है. वायरस वर्तमान में जिस वातावरण में है, उस परिस्थिति से मिलकर वो नया रूप धारण कर लेता है.
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के फैलने के एक साल बाद नए स्ट्रैन का आना अप्रत्याशित नहीं था क्योंकि टीकाकरण और प्राकृतिक संक्रमण के माध्यम से वैश्विक प्रतिरक्षा का स्तर बढ़ गया है. हालांकि कोरोना वायरस आमतौर पर शरीर में बेअसर होने से पहले लगभग 10 दिनों के लिए लोगों को संक्रमित करता है, अध्ययनों से पता चला है कि कुछ मरीज़ों के शरीर में यह अधिक समय तक मौजूद रहता है जिससे इसे खुद में बदलाव करने के लिए समय और मौका दोनों मिल जाता है.
एक अन्य विशेषज्ञ मेयर ने कहा, जिस संक्रमित व्यक्ति का इलाज किया जाता है उसके शरीर में वायरस पर कुछ हद तक प्रतिरक्षा दबाव रहता है जिससे वायरस अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए खुद में बदलाव करने पर मजबूर हो जाता है. उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान एक अधिक संक्रमणीय स्ट्रेन के बाद में विकसित होने की संभावना थी, क्योंकि शुरुआत में जो लोग संक्रमित हुए थे उनके शरीर में वायरस को रोकने के लिए प्रतिरक्षा के उपाय किए गए थे इसलिए बाद में उनके शरीर में मौजूद वायरस ने अपना रूप ही बदल लिया.