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देशभर में मरीज तड़प रहे, PM Cares से खरीदे गए वेंटिलेटर धूल फांक रहे

सरकारी अस्पतालों में धूल खा रही है वेंटिलेटर
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वेंटिलेटर यानी वो मशीन जो मरीजों के फेफड़े तक ऑक्सीजन पहुंचाकर उनकी जीवन रक्षा करती है. वो मशीन जो पीएम केयर्स फंड यानी प्राइम मिनिस्टर्स सिटिजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड के तहत पहुंचाई गई.  वो मशीन जिसको पाने के लिए बड़े शहरों में लोग अपना घर तक बेचकर इलाज प्राइवेट अस्पतालों में कराने को तैयार हैं. वही लाइफ सेविंग मशीन महीनों से देश के कई राज्यों के सरकारी अस्पताल में धूल खा रही है. 

सरकारी अस्पतालों में धूल खा रही है वेंटिलेटर
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कोरोना वायरस ने पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को झकझोर कर रखा हुआ है. देश के हर राज्य से मौत की खबरें आ रही हैं, इन मौत का सबसे बड़ा कारण अस्पतालों की फेल व्यवस्था है. लोगों ने वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की कमी के चलते लोगों ने दम तोड़ा है. देश के कई हिस्सों से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जहां पर लोग अस्पतालों के बाहर वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सपोर्ट पाने के लिए मिन्नतें कर रहे हैं. उन्हीं लाचार लोगों की जिंदगी के जख्म पर नमक छिड़कती है, वो व्यवस्था जो वेंटिलेटर पाकर भी सही वक्त पर शुरू नहीं करा पाती है. कई अस्पतालों में वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं पर उन्हें सही समय  पर चालू नहीं किया गया. तो कहीं पर वेंटिलेटर ऑपरेट करने वाले इंजिनियर नहीं हैं.  

सरकारी अस्पतालों में धूल खा रही है वेंटिलेटर
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सरकारी आंकड़े कहते हैं कि देश में 50 हजार कोविज मरीज अभी आईसीयू में हैं. जिसमें 14 हजार से ज्यादा लोग वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं.  करीब 1 लाख 37 हजार मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं.  लेकिन इन आंकड़ों में वो गिनती नहीं है जो अस्पतालों के बाहर ही वेंटिलेटर या ऑक्सीजन सपोर्ट पाने के लिए मिन्नतें कर रहे हैं.

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सरकारी अस्पतालों में धूल खा रही है वेंटिलेटर
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नासिक में वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं पर इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. नासिक म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को पीएम केयर्स फंड से 60 वेंटिलेटर मिले थे. यह वेंटिलेटर किसी काम के नहीं है. प्रशासन का कहना है कि वेंटिलेटर के आधे अधूरे पार्ट ही मिले हैं.  बताया जा रहा है कि जिस कंपनी ने वेंटिलेटर दिए थे उसी कंपनी को वेंटिलेटर के सभी उपकरण जोड़कर चलाना था. कंपनी ने पहले तो सिर्फ वेंटिलेटर बॉक्स भेजे लेकिन उसके कनेक्टर नहीं भेजे. जब से यह वेंटिलेटर आये हैं उस दिन से कंपनी को ईमेल किए, फोन भी किए गए पर कुछ नहीं हुआ. क्योंकि इस कंपनी पर ही देशभर में पीएम केयर्स के वेंटिलेटर की जिम्मेदारी है, जिसकी वजह से टेक्नीशियन कम पड़ रहे हैं. 

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जनता ने जो पैसा देश देशवासियों की रक्षा के लिए दिया. उस पैसे से भेजा गया वेंटिलेटर अब स्थानीय स्तर पर फेल व्यवस्था की भेंट चढ़ा दिया गया है.  झारखंड के हजारीबाग में  जनता की जान बचाने के लिए दिए गए 38 में से 35 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं. राजस्थान के भरतपुर में  एक प्राइवेट अस्पताल जिंदल हॉस्पिटल में जो वेंटिलेटर पड़े हैं बताया जा रहा है कि ये वेंटीलेटर सरकारी हैं और अस्पताल से कई गुना ज्यादा फीस लेकर आज आदमी को इलाज के लिए दिया गया है. 

सरकारी अस्पतालों में धूल खा रही है वेंटिलेटर
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 पीएम केयर्स फंड से जितने वेंटिलेटर भरतपुर में सरकारी प्रशासन को जनता के जीवन की रक्षा के लिए दिए, उतने प्वाइंट ही लगाकर चलाने की व्यवस्था सरकारी सिस्टम नहीं कर सका.  पीएम केयर फंड से जिला आरबीएम अस्प्ताल में 40 वेंटिलेटर मिले.  जिसमे से 19 वेंटिलेटर को उपयोग में लिया जा रहा है क्योंकि जिला आरबीएम अस्प्ताल में ऑक्सीजिन पॉइंट की कमी है.  चिकित्सा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग ने विधायक फंड से 7 ऑक्सीजन के पॉइंट लगवाने के लिए राशि स्वीकृत की है जिसका काम 15 से 20 दिनों के अंदर हो जाएगा

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वेंटिलेटर एक ऐसी मशीन है जो किसी मरीज की सांस लेने में मदद करती है. ये फेफड़ों में ऑक्सीजन डालती है और कार्बन डाईऑक्साइड निकालती है. लेकिन उन्हीं मरीजों को उत्तर प्रदेश के इटावा में भी कैसे लंबे वक्त तक सांस लेने के लिए तरसाया गया.  आजतक के खबर दिखाने के बाद प्रशासन जागा.

(Reuters) 

सरकारी अस्पतालों में धूल खा रही है वेंटिलेटर
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जीवन रक्षक उपकरण के भरोसे एक एक सांस की जंग मरीजों को लड़कर जीतनी होती है. वो वेंटिलेटर ही इटावा के सरकारी अस्पताल में होकर भी मरीजों के लिए इस्तेमाल नहीं हुए. क्यों नहीं हुए ? क्यों पड़े रहे वेंटिलेटर ? जब बड़े बड़े महानगरों में एक एक वेंटिलेटर बेड के लिए तरसते हैं,  लोग.  तब इटावा के सरकारी अस्पताल में बने कोविड सेंटर में पता चलता है कि 18 वेंटिलेटर हैं.  लेकिन इस्तेमाल नहीं हो रहे.  आजतक ने जब इस कहानी को प्रमुखता से दिखाया तब प्रशासन की नींद टूटी. अब इटावा के इस सरकारी अस्पताल में खरीदने के बाद बेकार पड़े वेंटिलेटर को चलाने वाले तकनीकी जानकार को बुलवाया गया. 

सरकारी अस्पतालों में धूल खा रही है वेंटिलेटर
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कोरोना की मार झेल रहे झारखंड का हाल भी कुछ अलग नहीं है. यहां दावा है कि जनता की जान बचाने के लिए दिए गए 38 में से 35 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं. ऐसे में आम मरीजों को सुविधाओं के लिए भटकना पड़ रहा है. 

(Photo for representation) 

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