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अजूबा या आफत...बर्फीले अलास्का के जंगलों में बढ़ रहा रेगिस्तान, साइंटिस्ट परेशान

Desert in Forest great kobuk Sand dunes of Alaska
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इसे प्रकृति का अजूबा कहें या आफत... अलास्का जैसे बर्फीले इलाके के जंगलों के बीच एक रेगिस्तान है. जिसे ग्रेट कोबुक सैंड ड्यून्स कहते हैं. साइंटिस्ट अब इस बात से परेशान है कि इसका आकार बढ़ा रहा है. हैरानी वाली बात ये है कि इस रेगिस्तान की रेत का रंग अब बदलकर अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान की तरह गोल्डन पीला हो रहा है. इस रेगिस्तान के धोरों की ऊंचाई बढ़कर 100 फीट तक हो चुकी है. जबकि, आसपास घने हरे जंगल, बर्फीले पहाड़ और नदियां हैं. (फोटोः बीएलएम अलास्का/ट्विटर) 

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नासा अर्थ ने हाल ही में एक ट्वीट कर इस बढ़ती हुई समस्या की ओर इशारा किया है. नासा अर्थ के साइंटिस्ट इस बात से काफी चिंतित हैं क्योंकि इस बढ़ते रेगिस्तान की वजह से कोबुल वैली नेशनल पार्क की बायोडायवर्सिटी खराब होने की आशंका है. इस इलाके के जंगलों में रेगिस्तान की वजह से पेड़ों की संख्या घटने लगी है. (फोटोः नासा)

Desert in Forest great kobuk Sand dunes of Alaska
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ग्रेट कोबुक सैंड ड्यून्स (Great Kobuk Sand Dunes) आर्कटिक क्षेत्र का सबसे बड़ा रेतीला इलाका है. यह करीब 78 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसके रेत के धोरों की ऊंचाई 100 फीट तक है. यह आर्कटिक सर्किल से मात्र 56.32 किलोमीटर दूर स्थित है. यह 28 हजार साल पहले के आइस एज का अवशेष माना जाता है. (फोटोः नासा)

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आइस एज की बर्फ जब पिघली और आसपास के पहाड़ों की तरफ ग्लेशियर खिसके तो उनके नीचे दबे पत्थर टूट-टूटकर और रगड़ खाकर रेत बन गए. ये सब आकर अलास्का के कोबुक वैली नेशनल पार्क में जमा हो गए. ग्लेशियर के नीचे दबे पत्थरों से 2 लाख एकड़ का इलाका ढंक गया था. अब यहां पर तीन बड़े रेतीले इलाके हैं. सबसे बड़ा ग्रेट कोबुक सैंड ड्यून्स और दो छोटे लिटिल कोबुक सैंड ड्यून्स और हंट रिवर सैंड ड्यून्स. (फोटोः आईजेएमएसके नेचर/ट्विटर)

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धीरे-धीरे समय बदलने के साथ-साथ पेड़-पौधे उगने लगे. जंगल बन गया. ये रेतीला इलाका घटकर 16 हजार एकड़ में रह गया. जंगल बढ़े तो यह और कम हो गया. लेकिन इस बीच ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अब यह फिर से फैल रहा है. जिसकी वजह से कोबुक वैली नेशनल पार्क के जंगलों को नुकसान हो रहा है. (फोटोः दानी द डियर/ट्विटर)

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इन रेत के धोरों और जंगलों में ग्रिजली भालू, काले भालू, लोमड़ी, भेड़िये, शाही और विभिन्न प्रकार के हिरण वगैरह रहते हैं. कोबुक वैली के आसपास लोग 8000 सालों से रहते आ रहे हैं. शुरुआत में ये लोग कोबुक नदी से भरपूर मछलियां पकड़ते थे. अब ऐसा नहीं होता. सिर्फ कुछ पर्यटक, स्थानीय लोग और पर्यावरणविद ही यहां जाते हैं. (फोटोः स्टेफनी पाइन/ट्विटर)

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हैरानी की बात ये है कि आर्कटिक क्षेत्र में होने के बावजूद इन रेतीले धोरों का गर्मियों में तापमान  37 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. जबकि, जंगलों और आसपास के पहाड़ों का तापमान कम रहता है. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इस इलाके में ग्रुप में जाना तो ठीक है, लेकिन अकेले यहां घूमना खतरे से खाली नहीं है. (फोटोः स्टेफनी पाइन/ट्विटर)

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