कुछ दिनों पहले एवरगिवेन नाम का जहाज स्वेज नहर में फंस गया था जिसे काफी मशक्कत के बाद निकाला गया. इसके चलते दुनिया का सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्ग काम करना बंद कर चुका था और अरबों का नुकसान हुआ था लेकिन इस सबके बीच मिस्र की पहली महिला जहाज कप्तान के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं.
29 साल की शिप कैप्टेन मारवा सुलेहदोर ने इंटरनेट पर कुछ खबरें ऐसी देखी जिनमें कहा गया था कि स्वेज नहर में एवर गिवेन शिप मारवा के चलते फंसा है. हालांकि मारवा उस समय स्वेज नहर से कई मील दूर एलेक्ज़ेंड्रिया में 'आएडा-फोर' नाम के जहाज में बतौर फर्स्ट मेट काम कर रही थीं.
इंटरनेट पर चली इन खबरों में कहा गया था कि स्वेज नहर में हुई इस घटना में मारवा शामिल हैं और उनकी इंस्टाग्राम तस्वीर को एडिट कर इन खबरों के साथ पोस्ट किया गया था. रिपोर्ट्स के अनुसार, ये खबर सबसे पहले अरब न्यूज नाम की वेबसाइट में रिलीज हुई थी.
बीबीसी के साथ बातचीत में मारवा ने बताया कि ये फेक न्यूज इंग्लिश में थी और यही कारण है कि ये खबर बहुत तेजी से कई देशों में फैलने लगी. इस न्यूज के चलते मेरी प्रतिष्ठा को काफी चोट पहुंच सकती थी इसलिए मैं इस खबर का लगातार खंडन कर रही थी. हालांकि उन्हें नेगेटिव के साथ ही पॉजिटिव कमेंट्स भी मिले जिससे उनका हौसला बढ़ा.
उन्होंने आगे कहा कि 'मुझे लगता है कि मुझे इस पूरे मसले में टारगेट इसलिए किया गया है क्योंकि इस क्षेत्र में मैं एक सफल महिला हूं और मैं मिस्र से हूं. लेकिन मैं साफ तौर पर नहीं कह सकती कि इस फर्जी खबर को फैलाने का आखिर क्या मकसद रहा होगा. मारवा कहती हैं कि उन्हें हमेशा से ही समंदर से प्यार रहा है.
मारवा ने बताया कि जब उनके भाई ने एएएसटीएमटी में एडमिशन लिया तो उन्हें भी मर्चेंट नेवी में जाने की प्रेरणा मिली. लेकिन उस वक्त इस इंडस्ट्री में पुरुषों को ही एडमिशन मिलता था. इसके बावजूद मारवा ने अप्लाई किया और मिस्र के राष्ट्रपति की समीक्षा के बाद उन्हें एडमिशन मिला था.
मारवा अगले महीने एक फाइनल परीक्षा देने जा रही हैं जिसके बाद उन्हें कप्तान की फुल रैंक मिल जाएगी. वे पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में अपने आपको बाकी महिलाओं के लिए रोल मॉडल के तौर पर पेश करना चाहती हैं. वे कहती हैं कि नेगेटिव सोच छोड़कर अपने काम पर फोकस करें और कड़ी मेहनत जारी रखें.
गौरतलब है कि इससे पहले भी मारवा इस पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में कई तरह की चुनौतियों का सामना करती रही हैं. इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन के मौजूदा आंकड़ों को देखें तो जहाजों पर काम करने वालों में मात्र दो फीसदी ही महिलाएं हैं.