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सूर्य की किरणों से होता है पहला अभिषेक, एक ही रात में क‍िया गया था व‍िशाल मंद‍िर का न‍िर्माण!

सूर्य की किरणों से होता है पहला अभिषेक, एक ही रात में क‍िया गया था व‍िशाल मंद‍िर का न‍िर्माण!
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महाशिवरात्रि पर्व पर यहां विशाल मेले का एक बहुत बड़ा आयोजन होता है जिसमें एक लाख से ऊपर श्रद्धालु भगवान शिव का अभिषेक करने और मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं. यह मंद‍िर मध्य प्रदेश के व‍िद‍िशा ज‍िले में है. (व‍िद‍िशा से व‍िवेक ठाकुर की र‍िपोर्ट) 

सूर्य की किरणों से होता है पहला अभिषेक, एक ही रात में क‍िया गया था व‍िशाल मंद‍िर का न‍िर्माण!
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परमार वंश के राजा उदयादित्य द्वारा निर्मित यह मंदिर आस्था और शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है. नीलकंठेश्वर मंदिर पर उत्कीर्ण दो शिलालेखों  मे 1059 से 1080 ईसवी के बीच परमार राजा उदयादित्य ने मंदिर का निर्माण कराया था.

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भोर होते ही नीलकंठेश्वर मंदिर में रोज सूर्य किरणाभिषेक  होता है. सूरज की पहली किरण मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती है. मंदिर का वास्तु कुछ इस प्रकार है कि भोर की पहली किरण वेधशाला मंडप और गर्भगृह के छोटे से द्वार को चीरती हुई भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग पर पड़ती है. जैसे सूर्य देव को देखकर साथ ही भोलेनाथ को प्रणाम कर जग में उजियारा फैलाने की इजाजत मांगते हों.
 

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परमार राजा भोज के पुत्र उदयादित्य द्वारा 10-11वीं शताब्दी में बनवाया गया उदयपुर का नीलकंठेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यह मंदिर आस्था और शिल्प का बेजोड़ संगम के लिए प्रसिद्ध है.

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गर्भगृह में विशाल शिवलिंग के दर्शन करने यहां महाशिवरात्रि पर लाखों दर्शनार्थी पहुंचते हैं. इस मंदिर का निर्माण एक विशेष नक्षत्र पुष्य नक्षत्र में किया गया था. इसलिए यह किंवदंती भी प्रचलित है कि मंदिर का निर्माण एक ही रात में किया गया है. वास्तुकला के बेजोड़ नमूने को निर्मित करने वाले की आकृति भी मंदिर के गुंबज के पास नजर आती है. भगवान शिव का यह मंदिर विख्यात है. राजा उदयादित्य द्वारा बनाए जाने से मंदिर को उदयश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है.

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