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लकवाग्रस्त चूहे के दिमाग में साइंटिस्ट ने डिजाइनर प्रोटीन डालकर दौड़ाया

German scientist make paralyzed mice walk again
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भविष्य में वो लोग भी ठीक हो सकेंगे जिन्हें लकवा का अटैक आया था. जर्मनी के वैज्ञानिकों हाल ही में एक लकवाग्रस्त चूहे को फिर से चलने लायक बना दिया. इसके लिए उन्होंने चूहे के दिमाग में एक डिजाइनर प्रोटीन डालकर न्यूरल लिंक को जोड़ दिया. न्यूरल लिंक दिमाग का वो धागा होता है जिससे दिमाग का पूरा जाल बुना रहता है. मेडिकल साइंस में यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है. (फोटोःरॉयटर्स)

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चूहे के स्पाइनल कॉर्ड यानी गर्दन के पीछे की ह्ड्डी में चोट लगने की वजह से लकवा मार गया था. जिसकी वजह से वो सिर्फ चल नहीं पा रहा था. जर्मनी की वैज्ञानिकों ने उसके दिमाग में एक डिजाइनर प्रोटीन डालकर ये समस्या दूर कर दी. अब वो चलता ही नहीं, बल्कि दौड़ने लगा है. (फोटोःरॉयटर्स)

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समाचार एजेंसी रॉयटर्स में प्रकाशित इस खबर के अनुसार स्पाइनल कॉर्ड में चोट लगना आजकल आम बात है. इंसानों के साथ भी अक्सर ऐसा होता है कि खेलते समय या एक्सीडेंट में चोटें लग जाती हैं, जिसकी वजह से शरीर का कोई एक हिस्सा या अंग लकवाग्रस्त हो जाता है. (फोटोःरॉयटर्स)

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आखिरकार किसी को लकवा मारता कैसे हैं. हमारे नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र में छोटे-छोटे न्यूरॉन्स होते हैं. जो एक दूसरे को इलेक्ट्रोकेमिकल फॉर्म में संदेश भेजते हैं. जब दो न्यूरॉन्स के बीच संबंध टूट जाता है तब उसे न्यूरल लिंक खराब होना कहते हैं. यानी शरीर के एक हिस्से में दिमाग से किसी तरह के संदेश नहीं जाता है. शरीर का वह हिस्सा ढीला पड़ा रहता है. (फोटोःरॉयटर्स)
 

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अगर शरीर के किसी लकवाग्रस्त हिस्से को वापस चलाना है या ठीक करना है तो जरूरी है वहां की मांसपेशियों तक दिमाग से संदेश जाए. इसी संदेश को भेजने के लिए जर्मनी के बोशम स्थित रूहर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने चूहे के दिमाग के हिस्से को डिजाइनर प्रोटीन से सक्रिय किया. वैज्ञानिकों के इस टीम के प्रमुख डायटमार फिशर ने बताया कि हमने जिस डिजाइनर प्रोटीन का उपयोग किया है, वो शरीर में बनता भी है हम उसे बाहर भी बना सकते हैं. (फोटोःरॉयटर्स)

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डायटमार ने बताया कि हम डिजाइनर प्रोटीन की मदद से शरीर के किसी भी हिस्से से संबंधित न्यूरल लिंक्स को वापस जोड़ सकते हैं. दिमाग के संबंधित इलाके को वापस सक्रिय कर सकते हैं. इसी वजह से ये चूहा अब चल रहा है. हमने इसके दिमाग में डिजाइनर प्रोटीन इंजेक्ट किया. उसके दो-तीन हफ्ते बाद यह खुद से चलने लगा. जबकि, इलाज से पहले वह सिर्फ लेटा रहता था. (फोटोःरॉयटर्स)

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अब डायटमार फिशर की टीम इलाज की इस पद्धत्ति को और बेहतर बनाने के लिए रिसर्च कर रही है. अब ये लोग बड़े स्तनधारी जीवों पर भी इस इलाज के तरीके का परीक्षण करने की तैयारी में हैं. जैसे- कुत्ते, सूअर और बंदर. अगर इन सब में यह परीक्षण सफल रहा तो भविष्य में इस ट्रीटमेंट के जरिए इंसानों का लकवा भी ठीक किया जा सकेगा. (फोटोःरॉयटर्स)

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डायटमार कहते हैं कि इंसानों को ठीक करने से पहले काफी क्लीनिकल ट्रायल्स और परीक्षणों की जरूरत है. लेकिन इसमें कई साल लग सकते हैं. क्योंकि अभी तक न्यूरल लिंक्स को जोड़कर लकवा ठीक करने का तरीका किसी ने ईजाद नहीं किया था. ये एकदम नया है. अगर इसमें हमारी टीम को सफलता मिलती है तो ये मानवजाति के इतिहास में बड़ा बदलाव होगा. (फोटोःरॉयटर्स)

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