पाकिस्तान के सिंध को अलग देश बनाने की मांग तेज हो गई है. रविवार को सिंध के सान कस्बे में सैकड़ों की संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया. ये प्रदर्शन एक अलग सिंधुदेश बनाने की मांग को लेकर किया गया. प्रदर्शन करने वालों के हाथों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई विदेशी नेताओं की तस्वीर दिखाई दी. प्रदर्शनकारियों ने अपील की कि विश्व के नेता सिंध को अलग देश बनाने में मदद करें. लेकिन ये अलग सिंधु देश बनाने का मामला आखिर है क्या और ये विवाद आखिर कब से चला आ रहा है? ऐसे कई सवाल होंगे जिसका जवाब आप जानना चाहेंगे तो चलिए विस्तार से बताते हैं आपको इस पूरे मामले के बारे में.
सिंध के वर्तमान हालात से पहले इसके इतिहास को जानना बेहद जरूरी है. ये तब की बात है जब दुनिया ऐसे अदृश्य लकीरों में नहीं बंटी थी. तब एक देश से दूसरे देश जाने के लिए वीज़ा नहीं लगता था. उस वक्त भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. महीनों की पैदल यात्रा के बाद जब कोई यात्री हिंदुकुश पार करके इस ओर आता था तब उसे सिंधु नदी नज़र आती थी. सिंधु नदी का जिक्र ऋग्वेद में भी आता है. प्रोटो-ईरानिक भाषाओं में सिंधू को हिंदू कहा जाता था और इस तरह हिंदू के पार बसी जगह हिंदुस्तान हो गई. ईरान के पार ग्रीक में लोग इसे इंडोस और रोम के लोग इंडस कहने लगे. और इस तरह इंडस के पार बसे लोगों को ‘पीपल ऑफ द इंडस’ यानी, इंडिका कहा जाता था जो अब इंडिया कहलाता है.
अब इस ऐतिहासिक इलाके के राजनीतिक परिदृश्य को समझते हैं. सिंधु नदी के साथ सटा इलाका सिंध कहलाता है और 1947 में हुए भारत पाक बंटवारे के बाद ये जगह पाकिस्तान में चली गई. ये इलाका पाकिस्तान के चार प्रांतों में से एक बन गया. बंटवारे के बाद कई सारे सिंधी लोग बचकर भारत आ गए और यहां से कई मुसलमान सिंध में जाकर बस गए. जिससे सिंध की आबादी का बैलेंस बिगड़ गया और वहां के मूल बाशिंदे कम हो गए. मूल सिंधियों ने पाकिस्तान को कभी दिल से नहीं अपनाया. इसी के चलते वो मांग करते हैं अलग ‘सिंधुदेश’ की. यानी अलग सिंध देश की जो पाकिस्तान से बिल्कुल अलग हो.
इसकी शुरुआत हुई साल 1967 में जब पाकिस्तान ने उनके ऊपर उर्दू को थोप दिया. बस वहीं से इस संघर्ष ने आग पकड़ ली, जिसने धीरे-धीरे राष्ट्रवाद का रूप ले लिया. असल में इन लोगों के लिए सिंध महज़ एक प्रांत नहीं है ये उनकी पहचान का एक बड़ा हिस्सा है, उनका मुल्क है. और ऐसा नहीं है ये मांग किसी एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा उठाई जा रही है. इस संघर्ष में सिंधी हिंदू और सिंधी मुसलमान दोनों शामिल हैं. इनकी लड़ाई कुछ वैसी ही है जैसी बलूचिस्तान के लोगों की है. जिन्हें लगता है कि पाकिस्तान में उनकी पहचान सुरक्षित नहीं है. पाकिस्तान उन्हें बस उनके प्राकृतिक संसाधनों के लिए इस्तेमाल करता है.
असल में सिंध प्रांत को पाकिस्तान में अनाज की टोकरी कहते हैं. ये जगह न हो, तो पाकिस्तान को पानी के भी लाले पड़ जाएंगे. लेकिन फिर भी राजनीति से लेकर नौकरशाही तक में सिंध से ज्यादा पंजाब प्रांत को अहमियत दी जाती है. लेकिन इस सबके बावजूद एक परिवार है जो सिंधी होने के बावजूद पाकिस्तान की राजनीति में काफी ऊंचे मुकाम पर है. हम बात कर रहें हैं भुट्टो खानदान की. इस परिवार ने पाकिस्तान को दो प्रधानमंत्री दिए हैं. ज़ुल्फिकार अली भुट्टो और उनकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो. और जब जुल्फिकार पाकिस्तान के पीएम बने तो तब ये संघर्ष भी धीमा हो गया लेकिन समय-समय पर ये संघर्ष उग्र रूप धारण करता रहता है.
सिंध प्रांत के लोग पाकिस्तान पर इल्जाम लगाते हैं. कि उनकी आवाज दबाने के लिए पाकिस्तानी हुकूमत उनके ऊपर जोर डालती है. सेना उनके ऊपर जुल्म करती है. उनके मानवाधिकारों का कोई अता-पता नहीं है. यहां कभी भी किसी को भी मार दिया जाता है. किसी को भी रातोंरात गायब करवा दिया जाता है. ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा बलूचिस्तान में सालों से हो रहा है. इस सबके बावजूद ‘सिंधुदेश’ की मांग ने दम नहीं तोड़ा. पाकिस्तान ने ऐसी मांगों को कुचलने के लिए काफी संसाधन खर्च किए हैं. फिर चाहे वो सेना हो या ISI. सालों से ये सब मिलकर इन्हें दबाने की कोशिश में जुटे हैं.
पाकिस्तान अकसर कश्मीर को लेकर भारत को घेरने की कोशिश में जुटा रहा है लेकिन पाकिस्तान के भीतर ये हाल है कि वहां इतनी आबादी पाकिस्तान से अलग होना चाहती है कि अगर वो अलग हो जाएं, तो पाकिस्तान शायद कुछ अदद किलोमीटर ही बचा रह जाएगा. आपको बता दें कि पाकिस्तान से बलूच अलग होना चाहते हैं. पश्तून अलग होना चाहते हैं. सिंधी अलग होना चाहते हैं. गिलगिट-बाल्टिस्तान वाले अलग होना चाहते हैं. खैबर-पख्तूनख्वा अलग जाना चाहता है. और ज़रा सोचिए कि अगर ये सब चले गए, तो पाकिस्तान के पास बचेगा क्या ?