वैसे तो होली का त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस बार होली 29 मार्च को पड़ रही है. लेकिन हमारे देश में कुछ जगहों पर होली का त्योहार पहले से ही शुरू हो जाता है. ऐसी ही एक जगह है बनारस यानी वाराणसी. जहां होली 5 दिन पहले ही रंगभरी ग्यारस के साथ शुरू हो जाती है.
(फोटो- रोशन जायसवाल)
इसे काशी की होली के नाम से भी जाना जाता है. बुधवार को काशी में होली शुरू हो गई है. यहां भक्तों ने बाबा काशी विश्वनाथ और मां पार्वती संग गुलाल खेलकर होली की शुरुआत की.
हिंदू धर्म में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ रंगभरी एकादशी के दिन ही मां पार्वती का हिमालय से गौना करा कर अपनी नगरी काशी पहुंचे थे. काशी में ये परंपरा 357 साल से भी ज्यादा पुरानी है.
परंपरा के अनुसार, भक्त टेढ़ी नीम इलाके से महंत आवास में बने देवी पार्वती के मायके से बाबा विश्वनाथ का गौना कराकर विश्वनाथ मंदिर के लिए निकले. इस दौरान भक्तों ने बाबा विश्वनाथ और मां पार्वती की चांदी की मूर्ति के दर्शन कर उन पर अबीर-गुलाल अर्पित कर जमकर होली खेली.
ऐसी मान्यता है कि जब बाबा विश्वनाथ रंगभरी एकादशी के दिन गौना कराकर मां पार्वती को हिमालय से काशी लेकर आए थे, तो उनके काशी आने पर भक्तों ने उनके साथ होली खेली थी. इसी मान्यता के अनुसार पिछले 357 सालों से यहां ऐसी होली खेली जा रही है.
357 सालों से इस परंपरा में जरा भी बदलाव नहीं हुआ है. ये आज भी वैसी ही मनाई जा रही है, जैसी पहले मनाई जाती थी. हालांकि, अब महंत आवास का पता जरूर बदल गया है. दरअसल, प्राचीन महंत आवास काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर में चला गया है.
विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी इस परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि जिस तरह से आम विवाह में सभी रस्में हफ्तों पहले से हल्दी के साथ शुरू हो जाती हैं. ठीक उसी तरह बाबा के विवाह की भी तैयारी होती है.