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ग्लेशियर टूटने से पहले कैसे बचाएं लोगों की जान, कैसे होगी ऐसी आपदा की भविष्यवाणी?

How to Save from GLOF and its prediction
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ग्लेशियर टूटने की घटना से दुनियाभर में कई स्थानों पर होती रहती है. इससे बचने का तरीका भी है और इसकी जानकारी भी पहले मिल सकती है. लेकिन उसके लिए हर ग्लेशियर पर कुछ खास तकनीक और ढांचागत वैज्ञानिक विकास करना होगा. अगर ये सब न हो तो ग्लेशियर से आने वाली बा़ढ़ से कैसे बचा जाए. ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Flood - GLOF) से कैसे निपटा जाए...(फोटोःपीटीआई)

How to Save From GLOF and Its Prediction
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सबसे पहले जिस जगह पर बर्फीली झील यानी ग्लेशियर की वजह से झील बनी है वहां पर मौजूद पानी को धीरे-धीरे करके निकाला जाए. झील की दीवार में छेद करके पानी बहाने से एकसाथ तेजी से पानी के बहने का खतरा नहीं रहता. पंप या साइफन करके झील से पानी निकाला जा सकता है. या फिर नहर बनाकर बर्फीले बांध का पानी निकाला जा सकता है. 

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कजाकिस्तान के अलाताउ में बोगातिर झील के साथ अनोखा तरीका अपनाया गया था. झील के आउटफ्लो यानी बहाव की दिशा में खुदाई करके बम लगाए गए. इसके बाद उन्हें फोड़ दिया गया. इससे बनी नहर से झील में जमा 7 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी दो दिन में बह गया. इससे तेजी से झील का पानी कम हुआ. ऐसा ही पेरू में किया गया. वहां ग्लेशियर के नीचे घाटी में नियंत्रित तरीके से कटिंग की गई. इससे वहां भी दो दिनों में 10 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी निकला. (फोटोःप्लैनेट लैब्स)

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इसके अलावा ग्लेशियर से बनी झील के निचले हिस्से में जहां से पानी के बहने की आशंका है, वहां पर पत्थर, कॉन्क्रीट या स्टील की मदद से आउटफ्लो बनाया जाए. लेकिन यह प्रक्रिया काफी कठिन होती है. क्योंकि अक्सर ऐसी ग्लेशियर झीले दुर्गम स्थानों पर होती हैं. वहां तक इतना लॉजिस्टिक ले जाना दुश्वारी वाला काम हो सकता है. ऐसे में स्थानीय स्तर पर मौजूद निर्माण लायक वस्तुओं को प्राथमिकता देनी चाहिए. जैसे स्थानीय पत्थर आदि. इस पत्थरों के गैबियन यानी तारों के जाल से बांधते हुए नहर जैसा बनाया जा सकता है. (फोटोःगेटी)

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अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित माउंट सेंट हेलेंस के पास स्पिरिट झील में भी ऐसा ही हादसा हुआ था. इस झील से पानी निकालने के लिए 20 ताकतवर पंपिंग सेट लगाए गए थे. यह प्रक्रिया 30 महीने तक चली थी. झील तो खाली हुई लेकिन 80 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो गए. हिमालय के पहाड़ों में यह संभव नहीं है. क्योंकि इतनी ऊंचाई तक बिजली की सप्लाई हर जगह नहीं है. लेकिन झील की बर्फीली दीवार के दूसरी तरफ टर्बाइन लगाकर इसका खर्च बचाया जा सकता है. (फोटोः प्लैनेट लैब्स)

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झील की बर्फीली दीवार के निचले हिस्से की तरफ छेद करें. छेद करने से पहले वहां पर टर्बाइन लगा दें तो पानी के फ्लो से वह तेजी से घूमेगा, इससे बिजली पैदा होगी. उसी बिजली से पंप चलाए जा सकते हैं, जो कि ऊपर से बर्फीली झील का पानी खींच रहे होंगे. ऐसे में नियंत्रित तरीके से बर्फीली झील का पानी कम खतरे के साथ निकाला जा सकता है. (फोटोःगेटी)

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ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Flood - GLOF) की भविष्यवाणी हो सकती है लेकिन उसके लिए कई तरह के साइंटिस्ट, काफी रिसर्च, मशीनों, यंत्रों और पैसों की जरूरत पड़ती है. सबसे पहले तो जरूरी है कि ग्लेशियरों का डिजिटल डेटा अपने पास मौजूद हो. बड़े नक्शे हो जिनका आकार 1:63,360 से लेकर 1:10,000 स्तर का हो. (फोटोःगेटी)

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इन नक्शों को बनाने के लिए सैटेलाइट इमेजेस का सहारा ले सकते हैं. जैसे LANDSAT TM, IRS1C/D, LISS3, SPOT XS, SPOT PAN(stereo), और IRS1C/D PAN (stereo) images या फिर भारतीय सैटेलाइट्स के जरिए प्राप्त तस्वीरों से नक्शे बनाए जा सकते हैं. (फोटोःगेटी)

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खतरनाक ग्लेशियरों की डिटेल रिस्क रिपोर्ट होनी चाहिए. ताकि समय-समय पर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Flood - GLOF) में आ रहे बदलावों का पता चल सके. इनके लिए एरियल सर्वे होते रहना चाहिए. इससे पता चलेगा कि कहां और कितनी टूट-फूट या दरार है ग्लेशियर में. (फोटोःपीटीआई)

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ग्लेशियर या ग्लेशियर से बनी झील के आसपास निगरानी के लिए ड्रोन की मदद से तस्वीरें लेना या फिर उन इलाकों में कैमरे लगाकर छोड़ देना. साथ ही मोशन और वाइब्रेशन सेंसर लगाए जाएं ताकि जैसे ही ग्लेशियर में किसी तरह की हलचल या वाइब्रेशन हो ये सेंसर्स निगरानी केंद्र को सूचित कर दें. ताकि तुरंत एक सायरन बजाकर इलाके के लोगों को अलर्ट किया जा सके. (फोटोःगेटी)

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