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दुनिया में पीले टाइगर्स मौजूद थे तो सफेद बाघ कहां से आए?

How White Tiger Came to World
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करीब दस दिन पहले निकारागुआ के एक चिड़ियाघर में सफेद बाघ (White Tiger) का जन्म हुआ. पीले रंग की मां बाघिन ने उसका सफेद रंग देखकर शावक को छोड़ दिया. इसके बाद उसका लालन-पालन चिड़ियाघर के कर्मचारी करने लगे. इस शावक का नाम नैइव (Nieve) रखा गया. स्पैनिश भाषा में नैइव का मतलब होता है स्नो यानी बर्फ. जबकि इसके माता-पिता भारत से भेजे गए पीले रंग वाले बंगाल टाइगर्स (Bengal Tigers) हैं. अब सवाल ये उठता है कि आखिर पीले रंग के बाघ-बाघिन का शावक सफेद कैसे हुआ? (फोटोःगेटी)

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भारत, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान में बाघों की जो प्रजाति पाई जाती है उसे बंगाल टाइगर कहते हैं. जीव विज्ञान की भाषा में इसे पैंथेरा टिगरिस टिगरिस (Panthera Tigris Tigris) कहते हैं. ये आमतौर पर पीले-नारंगी बैकग्रांउड पर काली धारियों वाले बाघ होते हैं. लेकिन इनसे सफेद शावक का पैदा होना...हैरत भी है और सवाल भी. (फोटोःगेटी)

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सफेद बाघ (White Tiger) बंगाल टाइगर की प्रजाति से अलग नहीं है. ये एक ही हैं. लेकिन इनका सफेद रंग एक जीन के रेसेसिव म्यूटेशन यानी कमजोर पड़ जाने की वजह से आता है. इसे पिगमेंट जीन कहते हैं. पिगमेंट जीन के एक स्ट्रेट के रेसेसिव होने की वजह वो रंग नहीं आता जो चाहिए होता है. या जिस रंग में हम आमतौर पर बाघों को देखते हैं. (फोटोःगेटी)

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बाघों में SLC45A2 नाम का पिगमेंट जीन होता है. यही जीन घोड़ों, मुर्गियों और मछलियों में भी पाया जाता है. लेकिन बाघों में इस जीन का एक स्ट्रेट जब कमजोर पड़ता है तब इसका पीला और नारंगी रंग नहीं आता. काले रंग की धारियों पर कोई असर नहीं पड़ता. बाघ सफेद और काली धारियों के साथ व्हाइट टाइगर बन जाता है. (फोटोःगेटी)

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भारत में सफेद बाघों का आधिकारिक दस्तावेजीकरण 1500 सदी में किया गया था. इसकी चर्चा तेजी से तब उठी जब भारत के एक जंगल में घूम रहे सफेद बाघ को 1958 में शिकार के दौरान मार दिया गया. इसके बारे में करेंट बायोलोजी जर्नल विस्तृत तौर रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी. (फोटोःगेटी)

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भारत में 1951 में मध्यप्रदेश के रीवा जिले में एक नर सफेद बाघ मोहन पकड़ाया था. ये माना जाता है कि वर्तमान समय में देश में जितने भी सफेद बाघ हैं, ये उसी के वंशज है. इसके अलावा ब्रीडिंग सेंटर पर मोहन से कई अन्य बाघिनों का प्रजनन करा कर देश में सफेद बाघ के शावक पैदा करवाए गए थे. (फोटोःगेटी)

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मोहन की ये वंशावली आज भी भारत समेत कई देशों में मौजूद है. वैज्ञानिक इन्हें अल्बीनो बाघ भी नहीं कहते. क्योंकि अल्बीनो बाघ का आकार और वजन कम हो जाता है. लेकिन इनका आकार और वजन आम बाघों की तरह ही रहता है. ब्रीडिंग सेंटर्स पर कोशिश ये रहती है कि अब व्हाइट टाइगर से ब्रीडिंग कम कराई जाए. क्योंकि इनके अंदर कई तरह की बीमारियां होती हैं. इससे बाघों की अगली पीढ़ी को नुकसान पहुंचने का डर होता है. (फोटोःगेटी)

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निकारागुआ में पैदा हुए सफेद बाघ नैइव के माता-पिता पीले और काली धारियों वाले थे लेकिन उसके ग्रेट ग्रैंडफादर यानी परदादा सफेद थे. इसका मतलब ये है कि नैइव के माता-पिता के शरीर में रेसेसिव जीन था. जो नैइव के गर्भधारण के समय सक्रिय हो गया. नतीजा ये हुआ कि नैइव सफेद रंग का पैदा हुआ. (फोटोःगेटी)

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बंगाल टाइगर्स की प्रजाति खतरे में है. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के हिसाब से इस समय जंगलों में बंगाल टाइगर्स की संख्या मात्र 2500 के करीब बची है. सफेद बाघ इसी प्रजाति के हैं, इसलिए इनकी अलग से गिनती नहीं की जाती. न ही इन्हें खतरे में पाई जाने वाली प्रजाति के अलग समूह में रखा जाता है. इनकी गिनती भी आम बाघों के साथ ही होती है. (फोटोःगेटी)

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चीन में पेकिंग यूनिवर्सिटी के बायोलॉजिस्ट शुजिन लुओ ने कहा कि सफेद बाघ बेहद दुर्लभ हैं. अन्य बाघों की तरह इन्हें भी बचाकर रखना चाहिए. ये बात सही है कि इनके अंदर प्राकृतिक तौर पर एक जीन कमजोर है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम इनके संरक्षण पर ध्यान न दें. ये भविष्य में बाघों की नई प्रजाति को विकसित करने में सक्षम हैं साथ ही बंगाल टाइगर्स की प्रजाति का संतुलन बनाने में मददगार भी. (फोटोःगेटी)

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