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ऐसे दिखते थे इंसानों के पूर्वज 'लूसी' और 'ताउंग चाइल्ड', वैज्ञानिकों ने बनाया नया चेहरा

Human Ancestor Lucy Gets New Face
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इंसानों के दो पूर्वजों की सुंदर शक्ल बनाई गई है. ये पूर्वज हैं 'लूसी' और 'ताउंग चाइल्ड'. कंप्यूटर के जरिए फेसियल री-कंस्ट्रक्शन करके बनाए गए. इन चेहरों को लेकर साइंटिस्ट्स का दावा है कि लाखों साल पहले ये ऐसे ही दिखते रहे होंगे. ये दोनों पूर्वज अफ्रीका में रहते थे. लूसी के चेहरे का री-कंस्ट्रक्शन करने के लिए साइंटिस्ट्स ने 1974 में संपूर्ण इंसानी पूर्वज की खोज शुरू की थी. तब उन्हें 32 लाख साल पुराने अवशेष मिले थे. (फोटोः रयान कैंपबेल)

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ठीक इसी तरह ताउंग चाइल्ड के चेहरे के री-कंस्ट्रक्शन के लिए 28 लाख साल पुरान अवशेष मिले थे. ताउंग की मौत 3 साल की उम्र में हुई थी. ये सारे अवशेष अफ्रीका में मिले थे. उन अवशेषों की त्वचा, मांसपेशियों, हड्डियों आदि के रंग और रासायनिक जैविक गठजोड़ को ध्यान में रखकर इनके चेहरे का री-कंस्ट्रक्शन किया गया. जिसमें नतीजा ये सामने आया कि ताउंग चाइल्ड का चेहरा इंसानों से ज्यादा मिलता है बजाय लूसी के. (फोटोः रयान कैंपबेल)

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वैज्ञानिकों ने लूसी की त्वचा का रंग मिलाने के लिए पिगमेंटेड सिलिकॉन कास्ट का उपयोग किया. जबकि, ताउंग चाइल्ड की शारीरिक बनावट और चेहरे की फीचर्स दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले आधुनिक मूल निवासियों से मिलता जुलता था. इन दोनों के चेहरों को बनाने में साइंटिस्ट्स की हालत खराब हो गई. ये काफी जटिल प्रक्रिया है. इस काम में काफी ज्यादा मुश्किल होती है. (फोटोः गेटी)

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इससे पहले वैज्ञानिक लूसी और ताउंग चाइल्ड के चेहरे का री-कंस्ट्रक्शन धारणाओं के आधार पर करते थे. उस समय की धारणाओं को आज के समय में वैज्ञानिक तरीकों से जांचा नहीं जा सकता. साइंटिस्ट ये जांच नहीं सकते थे कि प्राचीन प्रजातियों के वानर इंसानों जैसे दिखते थे. उनकी मांसपेशियां और तव्चा मोटी होती थी. जबकि, इंसानों की पतली होती है. इसलिए नए तरीकों से री-कंस्ट्रक्शन किया गया. ऐसे री-कंस्ट्रक्शन से नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में आने वाले लोगों को मानव विकास के बारे में समझने में आसानी होती है. (फोटोः गेटी)

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प्राचीन मनुष्यों के री-कंस्ट्रक्शन पर एक रिव्यू रिपोर्ट 26 फरवरी को फ्रंटियर इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुआ है. ऑस्ट्रेलिया की एडिलेड यूनिवर्सिटी के एनाटोमी और पैथोलॉजी के स्कॉलर रयान कैंपबेल कहते हैं कि दुनिया भर के म्यूजियम में लगी तस्वीरों या मॉडल्स को देखेंगे तो आपको लूसी की शक्ल अलग-अलग मिलेगी. हर एक अलग वर्जन था. इस नए री-कंस्ट्रक्शन से पहले की गई स्ट्डीज में पाया गया है कि 55 म्यूजियमों में दिखाई गई 860 इंसानी पूर्वजों के चित्र और मॉडल्स में विभिन्नताएं हैं. (फोटोः गेटी)

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इसलिए अभी के आर्टिस्ट, वैज्ञानिक और नेचुल हिस्ट्री म्यूजियम के लोग ये मानना चाहते थे कि फेसियल री-कंस्ट्रक्शन, फिलहाल साइंस से ज्यादा बेहतर एक कला है. एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के मूर्तिकला कलाकार और इस स्टडी के सह-शोधकर्ता गेब्रियल विनास के अनुसार वैज्ञानिक अब भी उचित रूप से री-कंस्ट्रक्शन के तरीके समझ नहीं पाए हैं. ये अब भी उनकी पहुंच से बाहर है. एक समस्या ये भी है कि कुछ री-कंस्ट्रक्शन जिनमे 2डी प्रक्रिया शामिल है, उनके प्रदर्शन नस्लवादी या गलत लगते हैं. (फोटोः गेटी)

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1965 में आई रुडोल्फ जैलिंगर की प्रसिद्ध 2डी इमेज 'द मार्च ऑफ प्रोग्रेस' में गलत तरीके से मानव विकास को दर्शाया गया था. जिसमें एक लीनियर डेवलपमेंट दिखाया जा रहा है. जिसमें एप जैसे जीव आगे चलकर गोरे रंग के इंसान बनते दिख रहे हैं. जो कि किसी भी तरीके से सही नहीं हो सकता. इसलिए लूसी और ताउंग चाइल्ड के री-कंस्ट्रक्शन के लिए मोल्डिंग, कास्टिंग, थ्रीडी प्रिंटर, पिगमेंटेड सिलिकॉन कास्ट आदि का सहारा लिया. (फोटोः गेटी)

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इसके पीछे बड़ा कारण ये है कि शुरुआती मनुष्य सॉफ्ट टिश्यू के साथ नहीं थे. इसलिए आर्टिस्ट को तय करना होगा कि चिंपैंजी, प्राइमेट डेटा मसल, त्वचा, या टिश्यू का बेस किस तरह से बनाया जाए. ताउंग का निर्माण करते समय वैज्ञानिक ने उसके दो रूप बनाए. पहला वानर जैसा और दूसरा इंसान जैसा. ताकि दोनों के अंतर को समझ सकें. (फोटोः गेटी)

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कई बार री-कंस्ट्रक्शन की जा चुकी लूसी का फिर से फेसियल रीकंस्ट्रक्शन करना काफी मुश्किल था. लूसी का फेस रिकंस्ट्रक्शन करना सबसे खराब प्रोसेस था, क्योंकि लूसी की ज्यादातर क्रेनियल बोन लापता थी. उसके निचले जबड़े की हड्डी सही तरह से बनाई गई. इससे आर्टिस्ट को उसके सिर को री-क्रिएट करने में मदद मिली. (फोटोः गेटी)

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लूसी के लिए टीम ने आधुनिक मनुष्यों की त्वचा की मोटाई का उपयोग किया. रिसर्च करने वालों ने लिखा कि भले ही परिणाम बेहतर माना जा सकता है. लेकिन हम मानते है कि कभी-कभी उपयोग किए जाने वाले इक्वेशन ने नकारात्मक परिणाम दिए हैं. कभी ये सही भी हो जाते हैं. निएंडरथल नमूने का रीकंस्ट्रक्शन जिसे अमुद 1 कहते है, लूसी की तुलना में आसान था. क्योंकि इसके चेहरे में अधुनिक मानव से काफी सारी समानताएं थी. (फोटोः गेटी)

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