scorecardresearch
 
Advertisement
ट्रेंडिंग

मनुष्य में दोबारा आ सकते हैं खोए हुए अंग, वैज्ञानिकों ने किया दावा

Humans
  • 1/8

अगर मनुष्य अपना कोई भी अंग किसी दुर्घटना में खो देता है तो फिर उसे पूरा जीवन उसी स्थिति में रहना पड़ता है. हालांकि अब एक शोध में दावा किया गया है कि सैलामैंडर जीव की तरह मनुष्यों में भी अपने खोए हुए अंग को फिर से पैदा करने की 'अप्रयुक्त' क्षमता होती है.

Humans
  • 2/8

शोधकर्ताओं की एक टीम के अनुसार, सैलामैंडर की तरह, मनुष्यों के पास अपने शरीर के कुछ हिस्सों जैसे खोए हुए अंग को पुन: उत्पन्न करने की  क्षमता होती है.
 

Humans
  • 3/8

हार्बर में एमडीआई जैविक प्रयोगशाला में इसपर रिसर्च करने के बाद विशेषज्ञों को इस निष्कर्ष तक पहुंचने में मदद मिली  कि मनुष्यों में खोए हुए अंग को फिर से उत्पन्न करने की 'अप्रयुक्त' क्षमता है. रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने यह समझने पर ध्यान केंद्रित किया कि एक्सोलोटल में चोट का कोई निशान क्यों नहीं बनाता है  या, चोट पर उसी तरह प्रतिक्रिया क्यों नहीं करता है जैसे कि चूहा और अन्य स्तनधारी करते हैं.
 

Advertisement
Humans
  • 4/8

उन्होंने अध्ययन में पाया कि मैक्रोफेज नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं ने ऊतक कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा दिया, लेकिन चूहे में चोट का निशान पैदा किया.
 

Humans
  • 5/8

रिसर्च टीम का कहना है कि निशान का गठन स्तनधारियों में पुनर्जनन को अवरुद्ध करने के लिए जिम्मेदार हो सकता है और भविष्य में, मस्तिष्क के मार्ग को अवरुद्ध करने से चोट के निशान पड़ सकते हैं जिससे मनुष्य खोए हुए अंगों को फिर से प्राप्त कर सकते हैं या समग्र स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं.

Humans
  • 6/8

डॉ जेम्स गॉडविन और उनके सहयोगियों ने एक्सोलोटल सैलामैंडर में चोट लगने के बाद आणविक सिग्नलिंग की तुलना एक वयस्क चूहे से की, जिसमें पुनर्जनन क्षमता सीमित है.

Humans
  • 7/8

गॉडविन ने समझाया कि खोए हुए या घायल शरीर के अंगों को पुन: उत्पन्न करने के बजाय, स्तनधारी आमतौर पर चोट लगने वाले स्थान पर एक निशान बनाते हैं, जो पुनर्जनन में बाधा उत्पन्न करता है.
 

Humans
  • 8/8

उन्होंने कहा, 'हमारे शोध से पता चलता है कि मनुष्यों में पुनर्जनन की अप्रयुक्त क्षमता है,' उन्होंने कहा कि चोट के निशान बनने की समस्या को हल करने से उस गुप्त पुनर्योजी क्षमता को अनलॉक किया जा सकता है. इस मुद्दे पर शोध पेपर डेवलपमेंटल डायनेमिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.
 

Advertisement
Advertisement