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विकास रेजिमेंट जिसने चीनी सेना को सिखाया सबक, Mountain Warfare में है महारत

विकास रेजिमेंट जिसने चीनी सेना को सिखाया सबक
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चीन ने 29-30 अगस्त की रात को साजिश तो रची थी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत की जमीन पर कब्जा करने की लेकिन भारतीय सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की विकास रेजिमेंट के आगे चीनी सैनिक टिक नहीं सके. ये एक ऐसी फोर्स है जो चीन बॉर्डर पर खुफिया मिलिट्री ऑपरेशन्स को अंजाम देती है. इस फोर्स की खास बात ये है कि इसमें भारत में रह रहे तिब्बती मूल के जवान भर्ती होते हैं जिन्हें Mountain Warfare में महारत हासिल होती है.

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स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के पराक्रम से 29 अगस्त की रात को चीनी सेना के मंसूबे फेल हो गये. इस फोर्स का नाम भी शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा क्योंकि इसके ऑपरेशन्स की तरह ये फोर्स भी इतनी खुफिया है कि भारतीय सेना को भी इसकी मूवमेंट की कोई भनक नही होती. इस फोर्स के जवानों को बहादुरी दिखाने पर सार्वजनिक तौर से सम्मानित भी नहीं किया जाता है.

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ये खुफिया फोर्स, काम भी भारतीय खुफिया एजेंसी, Research And Analysis Wing यानी RAW के अधीन करती है. इस फोर्स का गठन भी खासतौर से चीन की साजिशों को ध्यान में रखकर किया गया था.

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दरअसल 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद एक ऐसी फोर्स की कमी महसूस की गई. जो युद्ध की स्थिति में चीन की सीमा में घुसकर खुफिया मिलिट्री ऑपरेशंस कर सके और जिसे पहाड़ों पर युद्ध लड़ने में भी महारत हासिल हो. इसी मकसद से स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का गठन हुआ . जिसमें उस समय तिब्बती लड़ाकों को शामिल किया गया. 

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शुरू में इसमें 5000 जवान थे जिनकी ट्रेनिंग के लिए उत्तराखंड के चकराता में ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया. जहां पर फोर्स में शामिल जवानों को पहाड़ों पर चढ़ने और गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी गई. इस फोर्स में अब भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट से जवानों को शामिल किया जाता है. जिन्हें ट्रेनिंग के बाद अलग-अलग जगहों पर तैनात किया जाता है. भारतीय सेना की पैराशूट रेजिमेंट के ऑफिसर, इस फोर्स को कमांड करते हैं. 

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स्पेशल फ्रंटियर फोर्स कितने खुफिया तरीके से अपना काम करती है ये 29 अगस्त की रात को चीनी सेना को अच्छी तरह समझ में आ गया होगा. लेकिन इस फोर्स का इतिहास भी कम पराक्रमी नहीं है. गठन के बाद इस फोर्स ने कई अहम मिलिट्री ऑपरेशन्स में हिस्सा लिया है. 

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1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में चटगांव के पहाड़ों पर ऑपरेशन ईगल के तहत सुरक्षित करने में इस फोर्स का रोल था. उस ऑपरेशन में इस फोर्स के 46 जवान शहीद हुए थे. 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार में भी स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कमांडोज़ शामिल थे इस ऑपरेशन में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को खाली कराया गया था. 

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सियाचिन की चोटियों पर जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया था, तब भी इस फोर्स के कमांडोज़ ने अहम भूमिका निभाई और वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, ऑपरेशन विजय का हिस्सा थी. 

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बड़े मिलिट्री ऑपरेशन्स को अंजाम देना और गुमनाम रहना, यही इस फोर्स की खासियत है और सबसे बड़ी ताकत भी. विकास रेजिमेंट के पराक्रम का एक ट्रेलर, चीन की सेना 29 अगस्त की रात को देख चुकी है और अगर जरूरत पड़ी तो आगे भी देखेगी. 

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