कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से तो देश जूझ ही रहा है लेकिन इसके अलावा भी सरकार और नागरिकों के लिए एक बड़ी चुनौती मुंह बाए खड़ी है. ये चुनौती है कोविड-19 से जुड़े कचरे की. कोरोना की दूसरी लहर से ना केवल देश में जान-माल का भारी नुकसान हुआ है बल्कि बायोमेडिकल कचरे में भी जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है. (फोटोज क्रेडिट- Getty/ AFP/ Reuters/ PTI)
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक, बायोमेडिकल वेस्ट यानि वो कचरा जो किसी भी इंसान या जानवर के इलाज के दौरान या किसी शोध की गतिविधि के दौरान अस्पताल में इकट्ठा होता है. बायोमेडिकल कचरे का सही मैनेजमेंट इंफेक्शन को फैलने से रोकता है और कोरोना काल में ये और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.
बायोमेडिकल कचरे में कैप्स, मास्क, प्लेसेंटा, पैथोलॉजिकल कचरा, प्लास्टर ऑफ पेरिस, ऑपरेट करने के बाद निकाले गए अंग, एक्सपायर हो चुकी दवाएं, रेडियोएक्टिव कचरा, ग्लव्ज, ब्लड बैग, डायलिसिस किट्स, आईवी सेट्स, यूरिन बैग्स, केमिकल कचरा जैसी कई चीजें शामिल हैं. साइंटिफिक तरीके से डिस्पोज ना करने पर ये पर्यावरण के साथ ही इंसानों के लिए भी खतरनाक हो सकता है.
गौरतलब है कि भारत के सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड(CPCB) ने देशभर में कोविड कचरे को डिस्पोज करने के लिए गाइडलाइंस बनाई हैं. कोरोना मरीजों के क्वारनटीन, जांच और इलाज के दौरान पैदा हुए कचरे को इन्हीं गाइडलाइंस के तहत डिस्पोज किया जाना है. CPCB के मुताबिक, फिलहाल भारत में 198 कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (CBWTFs) कोविड कचरे को डिस्पोज करने में लगी हैं.
इसके लिए पिछले साल ‘COVID19BWM’ नाम का ऐप भी तैयार किया गया था. इसके जरिए कोविड वेस्ट की ट्रैकिंग की जाती है. बायोमेडिकल वेस्ट जनरेटर और कॉमन फैसिलिटी ऑपरेटर को हर दिन डेटा जमा करना होता है. 10 मई 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक, मई महीने में रोज औसतन 203 टन कोविड कचरे का उत्पादन हो रहा है.
10 मई को सबसे अधिक कोविड कचरे की मात्रा (250 टन) रिपोर्ट की गई थी. पिछले साल किसी एक दिन में सबसे अधिक 220 टन ही कोविड कचरा निकला था. सरकार की मौजूदा गाइडलाइन्स के हिसाब से जहां भी बायोमेडिकल कचरे को डिस्पोज करने के लिए कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (CBWTF) की सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहां के प्रशासन और हेल्थकेयर सर्विस को इमरजेंसी डिस्पोजल फैसिलिटी स्थापित करनी चाहिए.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोविड महामारी की वजह से सफाई कर्मचारियों को भी अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है. डालबर्ग एडवाइजर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 50 लाख सैनिटाइजेशन वर्कर्स हैं जिनमें से 50 प्रतिशत महिलाएं हैं. ये वर्कर्स हाशिए पर रहने वाला समुदाय है और ट्रेनिंग और जागरूकता के अभाव में इन लोगों में इंफेक्शन का खतरा कहीं ज्यादा है. इसके अलावा कई गांवों-शहरों में डोर टू डोर कचरा ना उठाने की सुविधा ने भी इंफेक्शन के खतरे को बढ़ाया है.
सरकार के नियमों के मुताबिक, बायोमेडिकल कचरे को तीन तरह के बैगों में कलेक्ट किया जाना है. इनमें यैलो बैग(जलाए जाने वाला कचरा), रेड बैग(रिसाइकिल होने वाला कचरा) और व्हाइट बैग(नुकीले और कांच से जुड़ा कचरा) शामिल है.
बायोमेडिकल कचरे के अलावा कोविड-19 ने देश में प्लास्टिक की खपत को भी बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है. साल 2019 में केंद्र सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक को व्यवस्थित तरीके से खत्म करने की योजना पर काम शुरू कर दिया था लेकिन कोविड-19 की आपदा ने अब तक की प्रोग्रेस को नकारात्मक तौर पर प्रभावित करने का काम किया है.
आमतौर पर एक पीपीई किट में गॉगल्स, फेस शील्ड्स, मास्क, ग्लव्ज, गाउन, हेड कवर और शू कवर जैसी चीजें शामिल होती हैं जो कोरोना के इंफेक्शन से बचाव करने में कारगर होती है. लेकिन इनमें इस्तेमाल होने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक्स माइक्रोप्लास्टिक्स में तब्दील हो जाते हैं जिन्हें रिसाइकिल करना लगभग नामुमकिन होता है.
ये माइक्रोप्लास्टिक्स खेतों से लेकर नदियों में पहुंचते हैं और इसके बाद हवा और खाने का हिस्सा बन जाते हैं. भारत में पिछले कुछ समय से अस्पतालों का इंफ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर हुआ है. इसके चलते बायोमेडिकल और प्लास्टिक कचरा भी बढ़ रहा है. ऐसे में मौजूदा समय में कोरोना से जुड़े और अन्य बायोमेडिकल कचरे को डिस्पोज करने के लिए खास सतर्कता बरतने की जरूरत है.