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पकाते हैं सांप-बिच्छू-मेंढ़क, गिद्ध-छिपकली छोड़ सबकुछ खाते हैं ये जवान

Indian guerrilla army
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भारत के गुरिल्ला कमांडों की ट्रेनिंग को सबसे चुनौतीपूर्ण ट्रेनिंग में से एक माना जाता है. ये ट्रेनिंग किसी भी सामान्य इंसान को एक ही अलग स्तर पर ले जाने का माद्दा रखती है. यही कारण है कि ये गुरिल्ला कमांडो शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक तौर पर भी काफी मजबूत होते हैं.

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IJWS यानी काउंटर इंसरजेंसी और जंगल वॉरफेयर स्कूल में भारतीय सैनिकों को इस प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे सैनिक जंगलों में दुश्मनों का सामना आसानी से कर सकें.  यहां दिए जाने वाले प्रशिक्षण को दुनिया के सबसे कठिन प्रशिक्षण में से एक माना जाता है.

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ये कमांडो उग्रवादियों से निपटने के लिए जंगलों में कड़ी ट्रेनिंग करते हैं और इन कमांडोज की डाइट भी ऐसी होती है जिससे इनकी मानसिक मजबूती का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. ट्रेनिंग का एक हिस्सा ऐसा भी होता है जिसमें इन गुरिल्ला कमांडोज को बेहद सामान्य चीजों के साथ जंगल में छोड़ दिया जाता है. 

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इन कमांडो को युद्ध जैसी परिस्थितियों में जीवन जीने की और दुश्मनों के क्षेत्र में कैसे सर्वाइव किया जाए, इसकी भी ट्रेनिंग दी जाती है. जंगल में जिस भी प्रकार के संसाधन होते हैं, उनमें सही-गलत की पहचान कर उसे ठीक से इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है.

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इन कमांडो में राष्ट्र को लेकर जज्बा इतना मजबूत होता है कि ये सांप, बिच्छू, केकड़े से लेकर मेंढक तक सभी कुछ खा जाते हैं. हालांकि वे खासतौर पर गिद्ध और छिपकली को नहीं खाते हैं. इसके अलावा खाने के लिए चूल्हे और बर्तनों का इंतजाम भी जंगल में ही नैचुरल तरीके से कर लिया जाता है. 

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 इसके अलावा इन कमांडोज का जानवर के जहर को चेक करने का भी एक तरीका होता है ताकि कहीं वे किसी जहरीले जंतु को ना खा लें. कमांडोज के लिए नमक-मसाले जैसी चीजें भी ना के बराबर ही होती हैं और उनका फोकस स्वाद पर नहीं बल्कि खाने द्वारा एनर्जी प्राप्त करने पर होता है. 
 

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ये कमांडो छोटी टुकड़ियों में घूमते हैं. उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी टुकड़ियां कारगर साबित नहीं होती हैं क्योंकि इससे गांव के लोग भी घबरा सकते हैं. यही कारण है कि ये कमांडो छोटी टुकड़ियों में घूमते हुए गांव के लोगों के साथ मिलकर अपने ऑपरेशन्स को अंजाम देते हैं.  
 

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गुरिल्ला कमांडोज को पूरी तरह से जंगल के कायदे कानूनों के हिसाब से अपने आपको ढाल लेना होता है और उन्हें उग्रवादियों से एक कदम आगे सोचना होता है क्योंकि वे आमतौर पर उग्रवादियों को उनके ही क्षेत्र में खत्म करने की तैयारी करते हैं. 
 

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इन कमांडोज की ट्रेनिंग स्कूल में भी काफी फोकस इस बात पर रहता है कि कैसे अपनी ट्रेनिंग के माध्यम से ये कमांडो उग्रवादियों के इलाके को उनसे भी बेहतर तरीके से जान सकें. यही कारण है कि ये गुरिल्ला कमांडो को अपने आप को बुरे से बुरे हालातों के लिए ट्रेनिंग में तैयार करते हैं. 

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