बस कुछ घंटे और. उसके बाद भारत की सुरक्षा और विकास का नया सिपहसालार अंतरिक्ष में तैनात हो जाएगा. इस निगहबान का नाम है - रीसैट-2बीआर1 (RiSAT-2BR1). भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो (Indian Space Research Organization- ISRO) आज यानी 11 दिसंबर 2019 को दोपहर 3.25 बजे इस ताकतवर राडार इमेजिंग सैटेलाइट को लॉन्च करेगा. लॉन्चिंग के बाद देश की सीमाओं पर नजर रखना आसान हो जाएगा. (फोटोः इसरो)
पीएसएलवी-सी48 क्यूएल रॉकेट के लॉन्च होने के करीब 21 मिनट बाद सभी 10 उपग्रह अपनी-अपनी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित हो जाएंगे. पीएसएलवी-सी48 क्यूएल रॉकेट में चार स्ट्रैप ऑन हैं, इसलिए पीएसएलवी के आगे क्यूएल लिखा गया है. (फोटोः इसरो)
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कैसे काम करेगा RiSAT-2BR1?
RiSAT-2BR1 (रीसैट-2बीआर1) दिन और रात दोनों समय काम करेगा. ये माइक्रोवेव फ्रिक्वेंसी पर काम करने वाला सैटेलाइट है. इसलिए इसे राडार इमेजिंग सैटेलाइट कहते हैं. यह रीसैट-2 सैटेलाइट का आधुनिक वर्जन है. (फोटोः इसरो)
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RiSAT-2BR1 कैसे करेगा देश की मदद?
RiSAT-2BR1 (रीसैट-2बीआर1) किसी भी मौसम में काम कर सकता है. साथ ही यह बादलों के पार भी तस्वीरें ले पाएगा. लेकिन ये तस्वीरें वैसी नहीं होंगी जैसी कैमरे से आती हैं. देश की सेनाओं के अलावा यह कृषि, जंगल और आपदा प्रबंधन विभागों को भी मदद करेगा. (फोटोः इसरो)
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श्रीहरिकोटा में लॉन्च व्यू गैलरी में तैयारियां पूरी
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा द्वीप पर स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर में इस लॉन्चिंग को लोगों को दिखाने की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. यहां मौजूद लॉन्च व्यू गैलरी दर्शकों का इंतजार कर रही है. यहां करीब 5 हजार लोग एकसाथ बैठकर रॉकेट का लॉन्च देख सकते हैं. (फोटोः इसरो)
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कब और कैसे छोड़ा जाएगा RiSAT-2BR1?
इसरो RiSAT-2BR1 सैटेलाइट को पीएसएलवी-सी48 क्यूएल रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड नंबर एक से अंतरिक्ष में लॉन्च करेगा. 628 किलोग्राम वजनी RiSAT-2BR1 सैटेलाइट को पृथ्वी से 576 किलोमीटर ऊपर की कक्षा में स्थापित किया जाएगा. (फोटोः इसरो)
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9 विदेशी उपग्रहों की भी साथ में होगी लॉन्चिंग
इसरो पीएसएलवी-सी48 क्यूएल रॉकेट के जरिए RiSAT-2BR1 को तो लॉन्च करेगा ही. साथ ही वह अमेरिका के 6, इजरायल, जापान और इटली के भी एक-एक सैटेलाइट का प्रक्षेपण इसी रॉकेट से करेगा. (फोटोः इसरो)
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मुंबई हमलों के बाद किया गया था बदलाव
26/11 को मुंबई पर हुए आतंकी हमलों के बाद शुरुआती रीसैट सैटेलाइट की तकनीक में बदलाव किया गया था. इन्हीं हमलों के बाद इस सैटेलाइट के जरिए सीमाओं की निगरानी की गई थी. घुसपैठ पर नजर रखी गई थी. साथ ही आतंकविरोधी कामों में भी यह सैटेलाइट उपयोग में लाई जा सकेगी. (फोटोः इसरो)