उन्हें बिहार में प्रवेश करने पर बेगूसराय का मजबूर परवीन मिला, जिसे भी उन्होंने सहारा दिया. अपनी मोटरयुक्त ट्राइसिकल से रस्सी बांधकर उसकी सादा ट्राइसिकल को वह खींचते हुए ले गए. रास्ते में उन्हें खाने के लिए भी तरसना पड़ा. आठ दिनों के सफर में किसी ने दिया तो खाया, नहीं तो पानी पी-पीकर वह ट्राइसिकल चलाते हुए मुंबई से बिहार के गोपालगंज में पहुंचे.