मंगल ग्रह पर एक विचित्र लंबा सफेद बादल देखने को मिला है. ये बादल मंगल के आसमान में अक्सर देखने को मिलता है, जिसे कई वर्षों से वैज्ञानिक देख रहे हैं. लेकिन अब इसके पीछे का रहस्य खुला है. इस रहस्य को सामने लाने में भारत के मंगलयान ने भी मदद की है. इस लंबे, सफेद बर्फ की तरह दिखने वाले इस बादल की उत्पत्ति सौर मंडल के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी पहाड़ के आसपास ही होती है. आइए जानते हैं इस बादल के रहस्य के बारे में, आखिर क्या है ये? क्यों बनता है ये मंगल ग्रह पर? क्या वजह है इसके बनने की? (फोटोःESA/NASA)
मंगल ग्रह पर सौर मंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है. इसका नाम ओलिंपिस मॉन्स (Olympus Mons) है. ये भी कहा जाता है कि यह ज्वालामुखी सौर मंडल का सबसे ऊंचा पहाड़ है. यह मंगल ग्रह के दक्षिणी हिस्से में स्थित है. हर साल इसके ऊपर से एक सफेद बादल की लंबी सी पूंछ मंगल ग्रह पर देखने को मिलती है. (फोटोःESA/NASA)
ओलिंपिस मॉन्स (Olympus Mons) के ऊपर बनने वाला यह सफेद बादल हर दिन करीब 80 बार बनता और बिगड़ता है. पिछली बार जब यह पूंछ देखी गई तो इसकी लंबाई 1800 किलोमीटर थी. जबकि, इसकी चौड़ाई 150 किलोमीटर थी. इस बादल को अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड (Arsia Mons Elongated Cloud) कहते हैं. (फोटोःESA/NASA)
अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड (Arsia Mons Elongated Cloud) की तस्वीर ली है यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर (Mars Express Orbiter - MEO) ने. MEO में विजुअल मॉनिटरिंग कैमरा (VMC) ने इसकी तस्वीरें और वीडियो बनाए. इस कैमरा को मार्स वेबकैम (Mars Webcam) भी कहा जाता है. (फोटोःESA/NASA)
DYK?
— Tom Fulop-Lover of all things SPACE 🇦🇺 (@TomFulop) March 10, 2021
A European spacecraft is unraveling the secrets of the long cloud that has been appearing repeatedly in the Martian sky for years. The Arsia Mons Elongated Cloud is a peculiar feature on Mars: a long, bright water ice cloud stretching over the surfacehttps://t.co/oBMfKv1w72 pic.twitter.com/KmGdjgO622
यूरोपियन स्पेस एजेंसी और नासा के वैज्ञानिकों ने जब इस बादल का अध्ययन किया तो पता चला कि यह बादल सूरज के उगने से पहले बना था. यह करीब ढाई घंटे तक मंगल ग्रह की सतह पर दिखाई देता रहा. यह 600 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से अपने सिरे से पूंछ की तरफ बह रहा था. इसके बाद यह अपनी उत्पत्ति वाली जगह से अलग हो गया और धूप खिलने तक गायब हो गया. (फोटोःESA/NASA)
मंगल ग्रह पर बने अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड (Arsia Mons Elongated Cloud) को ओरोग्राफिक (Orographic) बादल भी कहते हैं. यानी ये सतह पर दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर बहता है. धरती पर भी ऐसे बादल कई बार बनते हैं लेकिन इनकी लंबाई-चौड़ाई इतनी ज्यादा नहीं होती. न ही मंगल ग्रह पर बने इस सफेद बादल की तरह डायनेमिक होते हैं. (फोटोःESA/NASA)
अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड (Arsia Mons Elongated Cloud) इस बार अर्सिया मॉन्स ज्वालामुखी (Arsia Mons Volcano) के पास बना था. अर्सिया मॉन्स ज्वालामुखी के बेस से 45 किलोमीटर ऊपर यह बादल उड़ रहा था. जबकि, अर्सिया मॉन्स ज्वालामुखी की ऊंचाई 20 किलोमीटर है. (फोटोःESA/NASA)
1976 से लेकर अब तक अमेरिका और यूरोप समेत अन्य देशों के मंगल ग्रह का चक्कर लगाने वाले 5 ऑर्बिटर्स ने 100 से ज्यादा बार ऐसे बादलों को देखा है. लेकिन मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर (Mars Express Orbiter - MEO) इसके रहस्य खोलने में मदद की है. MEO के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट दिमित्रिज तितोव ने बताया कि VMC का मकसद था मंगल ग्रह पर खो चुके बीगल-2 लैंडर (Beagle-2 Lander) को खोजना. लेकिन इसने एक नई चीज का खुलासा कर दिया. (फोटोःESA/NASA)
अब वैज्ञानिक इस बादल के सहारे मंगल ग्रह के वायुमंडल और सतह पर जीवन की खोज में लगे हैं. ये पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं अर्सिया मॉन्स ज्वालामुखी में विस्फोट की वजह से ये बादल तो नहीं उठा. हालांकि अभी तक इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं. साइंटिस्ट्स साथ ही ये भी पता करने का प्रयास कर रहे हैं कि इन बादलों की उम्र कितनी होती है. जैसे अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड ढाई घंटे में खत्म हो गया. क्या और भी बादल इतनी देर तक रहते हैं. (फोटोःESA/NASA)
इस बादल की स्टडी के लिए पांच सैटेलाइट्स का उपयोग किया है उसमें भारत का मंगलयान (Mars Orbiter Mission) भी शामिल हैं. बाकी चार मिशन हैं- नासा का MAVEN, MRO, Viking-2 और मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर. मंगलयान से प्राप्त तस्वीरें भी इस बादल और इसकी उत्पत्ति के जगह की तस्वीरें ले चुका है. जिसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने इसरो से मांगा था. (फोटोःESA/NASA)